नवरात्रि कुदरत का दैविय उपहार लाति है।
कुदरत का दैविय उपहार लेते हुए आति है यह नवरात्रि। इस त्यौहार के आगमन मे हमारे मन मे भक्ति भाव के अभिनव आनंद जगाति है। नवरात्रि के इस नव दिनो के दर्मियान मनुश्य को श्रध्धा और भक्ति भाव पुर्वक माँ जगदम्बा की उपसना कर के शक्ति प्राप्त करने की आवश्यक्ता है। और इसी शक्ति के माध्यम से अपने अंदर और बाहर के अशुरो को हराना है।
हमारे अंदर की निर्बलता को दुर करना है। इतना हि नहीं, माँ जगदम्बे कि भक्ति से प्राप्त अलौकिक शक्ति से हमे अपने अंतर की किसी एक कोने मे छुपि सद्भावना, करुना, क्षमा और उदरता जैसि सूक्ष्म सम्पति को उजगर करके अपना और दुसरो का भला करने कि आवश्यकता है।
शक्ति की उपासना
मन को शुभ विचार का और दिल को पवित्र बनाना चाहिये, सही रास्ते पर चलना चाहिये। वेदो मे भी कहा गया है कि – शक्ति कि उपासना करो।
महाभारत का हर-एक पन्ना शक्ति उपासना और शौर्यपूजा से भरा है। व्यास, भीष्म और कृष्ण के सर्व व्याख्यान – तेज, ओज, शौर्य, पौरुष और पराक्रम से अंकित हुए है। महर्षि व्यास ने भी पांडवो को शक्ति उपासना का महत्व कई तरह से समझाया है।
महाकवि भारवि ने अपने महा काव्य ‘किरातार्जुनीयम’ मे कहा है की, मनुष्य को ज्यादा सामर्थ्यशील और साधन संपन्न बन कर यूध्ध मे विजय पा ना है। धर्म के मूल्यो को संभाल ने के लिए शक्ति की उपासना जरूरी है।
नवरात्रि के इस पवित्र पर्व के अवसर पर माँ जगदंबा का स्तवन ‘या देवी सर्वभूतेशु’ का स्मरण कर के माँ के चरण कमल मे अपना मस्तक झुका कर अपने जीवन को कृतार्थ कर लेना है और इन दिनो मे बहते रहे साधना के सूर पकड़ कर जीवन को समर्पण के संगीत से भर देना है।
शक्ति पूजा का पर्व – नवरात्रि
‘जहाँ भोग है वहाँ मोक्ष नहीं और जहाँ मोक्ष है वहाँ भोग नहीं’। माँ परा शक्ति की उपासना करने मे तत्पर लोगो के लिए भोग और मोक्ष दोनो सामने ही होते है।
भगवान शिवजी माँ पार्वती को उपदेश देते हुए कहते है की, हे देवी ! मनुष्य मात्र के हिते के लिए और खास कर के कलियुग के जीवो के लिए वेदशास्त्र (निगम) जेसी ही आगम शास्त्र की मैंने पहले से ही रचना कर दी है, जिसमे वेदो का सार है। जिसकी विशेषता यह है की, वैदिक मार्ग से मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को लौकिक विषय भोगो का त्याग करना पड़ेगा, जब की आगम शास्त्र को अनुसर ने वाले को भोग और मोक्ष दोनों साथ ही प्राप्त करने का सुगम मार्ग दर्शाया गया है।
ईश्वर को भी कार्य करने के लिए शक्ति-ऊर्जा की जरूरत होती है। नवरात्रि शक्ति – पूजा का पर्व है। शास्त्रो के अनुसार नवरात्रि साल मे चार बार आती है, जिसे वासंतिक, आषाढीय, शारदीय और माघीय नवरात्रि कहते है। जिसमे वासंतिक यानि चैत्रीय और शारदीय यानि आश्विनी नवरात्रि ज्यादत्तर प्रसिद्ध और महिमावंत मानी जाती है।
शारदीय नवरात्रि मे दुर्गा पूजा को ‘महापूजा’ कहा जाता है। नवरात्रि की नव पवित्र रातो के दौरान तीन देवियों माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती के नव स्वरूपो की पूजा की जाती है। जिन्हे नव दुर्गा कहा जाता है।
इस सृष्टि का सर्जन, पालन और संहार करने वाली माँ आध्याशक्ति एक ही है। उनके कल्याण कारी स्वरूप को ‘दुर्गा’ कहते है। तंत्र आगम के अनुसार माँ दुर्गा संसार के प्राणीओ को दुर्गति और दुख से मुक्त करती है। इसीलिए उनको ‘दुखहारिणी’ कहा जाता है।
नवदुर्गा के नव मनोरम्य नाम इस प्रकार है:
- एक माँ शैलपुत्री,
- दो माँ ब्रह्मचारिणी,
- तीन माँ चंद्रघंटा,
- चार माँ कुष्मांडा,
- पाँच माँ स्कंदमाता,
- छ माँ कात्यायनी,
- सात माँ कालरात्रि,
- आठ माँ महागौरी और
- नव माँ सिद्धिदात्री ।
माँ के इन नव स्वरूप को नवरात्रि के दौरान पूजा–आराधना की जाती है। मंत्र, तंत्र और यंत्र के माध्यम से माँ शक्ति स्वरूप की साधना की जाती है। और यह साधना करने वाले को प्रेम से श्रेय, भोग से मोक्ष तक के सारे फल प्राप्त होते है।
नव दुर्गा के साथ दस महाविद्याओ की भी शक्ति – आराधना मे पूजा की जाती है। काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी (षोडशी), भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, घुमावती, मातंगी, कमला और बगलामुखी इन दस महाविद्याओ को दर्शाया गया है।
नवरात्रि की उपासना से प्रसन्न हो कर करुणा की देवी, कृपालु माँ दुर्गा अनेक वरदान प्रदान करते है। इसलिए महाशक्ति माँ दुर्गा की उपासना और पूजा-आराधना श्रध्धापूर्वक करनी चाहिए।