वसंत पंचमी का त्यौहार :
प्रकृति मे और मनुष्य मे नए जीवन का स्पर्श करने के लिए और नए उमंग को मनुष्य के जीवन मे भरने के लिए वसंत पंचमी बड़े ही उमंग के साथ आती है।
माघ शुक्ल पक्ष पंचमी वसंत पंचमी का दिन है। इस दिन से वसंत की ऋतु का आगमन होता है।
विद्यारंभ का शुभ अवसर वसंत पंचमी :
प्रकृति का महान उत्सव वसंत पंचमी है। इस के सिवा भी इस दिन विद्या, शिक्षण का शुभारंभ करने के लिए उत्तम अवसर है।
हमारे शास्त्रो मे भी कहा गया है की इस दिन प्रकृति की देवी माँ सरस्वती का विशेष रूप से पूजन-अर्चन करना बहुत महत्व का है। पौराणिक शास्त्रो के अनुशार सृष्टि की रचना करने के लिए माँ दुर्गा, माता राधा, माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और माता सावित्री इन पाँच देवियो का अगत्य का योगदान रहा है।
जिसमे सरस्वती देवी माता राधा देवी के स्वरूप मे से उत्पन हुए है। माँ सरस्वती की कृपा से ही ज्ञान के प्यासे लोग पंडित बन सकते है, और शिक्षित लोग बुध्धिमान बन जाते है।
सब से पहले भगवान श्री कृष्ण ने माता सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की। भगवान श्री कृष्ण मा सरस्वती के तेजस्वी स्वरूप से प्रभावित हो गए, और उनकी इच्छा जान के उनको अभय वरदान दिया, “हे देवी मेरे ही अंश से अवतार ले कर मेरे ही रूप श्री नारायण की सेवा करो, और शुक्ल पक्ष की पंचमी के पवित्र दिन शिक्षा आरंभ करने के लिए पदितों, विद्यार्थीओ आपकी विशेष रूप से पूजा-अर्चना करके आपको प्रसन्न कारेंगे”।
तब से सारे मनुष्य- देवतागन और मुनियो विद्या की प्राप्ति के लिए माता की पूजा-अर्चना करने लगे। ‘श्री हीं सरस्वत्यै स्वाहा’ इस मंत्र का गुरु की आज्ञा के अनुसार जप करने का विधान है। यह मंत्र कल्पवृक्ष के समान जाना जाता है।
माता सरस्वती कवच का नियमीत रूप से पठन करने से व्यक्ति ज्ञानी, बुद्धिशाली, कवि या लेखक बन जाते है।
वसंत ऋतु का सौदर्य :
साल भर मे वसंत का अर्थ प्रकृति का यौवन काल है। जीस मे वसंत पंचमी जीवन मे संघर्ष का सामना कर रहे मनुष्य समाज के लिय चैतन्य पर्व है। जिंदगी के पतझर को बिदा कर के वर्तमान समय को ताज़गी देने का और जीवन के बगीचे को खिलता रखने का यह पर्व है।
ईश्वर तो ‘सत्यम-शिवम-सुंदरम’ स्वरूप है। इसी लिए ही सौन्दर्य की पूजा मे जो शुद्ध भावना मिल जाए तो ये सच्ची ईश्वर की पूजा बन जाए। वर्तमान समय मे मनुष्य की प्रकृति के आगन मे खिलते हुए सौन्दर्य को देखने के लिए मनुष्य की द्राशती कम हो गई है।
पेड़-पौधों और फूलों की सुंदरता को देखने की दृष्टि को साधना पड़ता है, तब भी वसंत ऋतु की कलियाँ मानव की हरियाली में खिलती हैं। वसंत पंचमी से मनाया जाने वाला वसंतोस्तव के द्वारा आखिरकार तो पेड़-वनस्पतिया की पुजा से मानव समाज को प्रकृतिक वातावरण की जानकारी देनेका संदेश दिया हुआ है।
वसंत लक्ष्मी के वसंती नए पत्ते और फूलो की सजावट सजा कर ऋतुराज वसंत ऋतु का स्वागत करते है। वसंत का अर्थ है, पेड़ की शाखाएं पक्षियों के चहकने से गूंज रही हैं। उत्तर दिशा से गुलाबी ठंडी हवाएँ चलती हैं।
गुलाबी ठंडी हवा उत्तर से बहती है, जबकि वसंत सौंदर्य का वर्णन करने वाली कविताओं को कवि द्वारा चुनौती दी जाती है। गीत-संगीत के रसिको के दिल से सात सुरो का संगीत निकालते है। इस प्रकार वसंत पचमी संगीत, सुघन्ध और सुंदरता का वैभव प्रकट करती है।
हम भी हमारे जीवन को वसंत की तरह सुंदर और भगवान श्री कृष्ण की माधुर्यभक्ति, सरस्वती विद्या से सुगन्धित बनाए।
सरस्वती नदी, पद्मावती नदी और गंगा नदी की उत्पत्ति की कथा:
पौराणिक कथाओमे सरस्वती नदी कैसे बनी इसका महत्व का इतिहास देखने को मिलता है।
एक समय था जब भगवान श्री हरी की तीन पत्नीया थी, गंगा, सरस्वती और लक्ष्मी । इन तीनों मेसे भगवान गंगा की ओर ज्यादा प्रसन्न रहते। श्री लक्ष्मीजी तो शांत रहते थे, लेकिन माता सरस्वती देवी नाराज़ रहने लगे। और तीनों बीच संघर्ष खड़ा हुआ।
तीनों देवियो ने श्री हरी से कहा की, हे प्रभु! आपको तो हम तीनों पत्नीओ के साथ समान पतिधर्म अपनाके हमे समान न्याय देना चाहिए। इस प्रकार तीनों देवियों एक-दूसरे को शाप देने लगी। गंगा देवी ने सरस्वती देवी को नदी बन जाने का शाप दिया, तो उसी समय देवी सरस्वती ने भी देवी गंगा को नदी बन जाने का शाप दिया और कहा की तूमे पूरे समाज के पापा को धोना पड़ेगा।
श्री विष्णु ने तीनों पत्नियों को शांत किया और आशीर्वाद देते हुए कहा, देवी सरस्वती आप इस भारत वर्ष मे सरस्वती नदी के रुपमे रहकर ब्रह्मा जी के आशीर्वाद को प्राप्त करोगी। देवी लक्ष्मी पद्मावती नदी बनकर, मेरी अर्धांगिनी के रुपमे पूंजी जाएगी। देवी गंगा, आप नदियो के मूल स्वरूप मे भगवान शिव की जटा मे बिराजमान होंगी।
इस प्रकार यह तीनों देवीयां नदियो के स्वरूप मे धरती पर आई और मानवजीवन का उद्धार करने के लिए, भारतवर्ष मे स्थित होकर इस भूमि को पवित्र करती है।
तो आइये आप और हम सब मिलकर इस पावन वसंत पंचमी के दिन हमारे जीवन मे वसंत के जैसा खिलकर माँ सरस्वती देवी की उपासना करते है।
बुद्धि की शुद्धि करने का समय वसंत पंचमी :
अंग्रेजी मे एक कहावत है, ‘नॉलेज इज़ पावर’ जिसके पास नॉलेज होता है वो कहिपर भी पीछे नहीं हटता उसका आध्यात्मिक और आत्मिक ज्ञान एवं समाज ज्यादा होती है। जेसे वसंत चारो ओर महेकता है उसी प्रकार मनुष्य की असली पहचान बाहर आती है।
सबसे पहले तो वसंत के वैभव की तरह मनुष्य के विचारो का वैभव प्रकट होना चाहिए। तभी तो वसंत के वैभव का मन भर के मज़ा ले सकेंगे।
वसंत पंचमी के इस पवित्र दिवस पर मा सरस्वती के पास यही तो मांगना है, नए ज्ञान का उदय हो और पुराने गीले-शिकवे भूल जाए। यही तो वसंत पंचमी की विशेषता है।
वसंत मे वृक्ष पर से पत्ते गिर जाते है, और यही हमे शिखाते है की हम मे जो नफरत, गुस्सा, हताशा, अंधश्रद्धा, मोह, शंका, निराशा एसी कई कपट वृत्ति को हम निकाल फेके और हमारी बुद्धि का सही उपयोग करके उसकी शुद्धि करे।
बुद्धि की शुद्धि विचारो से होती है। विचारो मे शुद्धि होगी तभी बुद्धि की शुद्धि हो पाएगी। सिर्फ बुद्धि होना काफी नहीं है, उसका शुद्ध होना भी जरूरी है। जिस प्रकार हम सुबह उठ कर नहते है, उसी प्रकार हमारी बुद्धि को भी शुद्ध करना जरूरी होता है।
पुराने विचारो को दूर करेंगे तभी तो नए विचार की जगह बन पाएगी। वसंत का अर्थ ही नवीनता का स्वागत होता है।