भारतीय महिला वैज्ञानिक Indian women scientists :
विज्ञान के क्षेत्र मे काम करने वाली महिलाए कम है, जिस महिला वैज्ञानिक पर शायद किसी ने भी ध्यान नहीं दिया होगा।
1. डॉ. अर्चना शर्मा Dr. Archana Sharma – वनस्पतिशास्त्र के विशेषज्ञ
ज़्यादातर वनस्पति-पौधे, बेल ऐसे होते है, जो अपने खुद के बल पर बड़े होते है यानि की परागन नहीं होता। ऐसे वनस्पति-पौधे अलैंगिक कहे जाते है। डॉ. अर्चना शर्मा ने उस पर संशोधन किया था। वनस्पति के जैसी सभी सजीवों का मूल बंधारण कोशिका (सेल) है। इस कोशिका की रचना का भी डॉ. अर्चना शर्मा ने अभ्यास किया था।
वनस्पतिशास्त्र मे किसिने भी ऐसा साहस नहीं किया होगा, ऐसे संशोधन देने वाली महिला के हाथ नीचे 70 विद्यार्थीओने डॉक्टोरेट की पदवी प्राप्त की।
डॉ. अर्चना शर्मा का जन्म 1932 मे महाराष्ट्र के पुणे मे हुआ था। जबकि 2008 मे उनकी मृत्यु हुई।
2. जानकी अम्मल – मधर ऑफ बॉटनी
धरती के कोनसे विस्तारमे किस प्रकारके पोधे, बेल क्यों बड़े होते है और किसी ओर विस्तार मे क्यौ नहीं उगते, उस पर उन्होने अभ्यास किया था। गन्ने, बैगन आदि सब्जी-फल का उपयोग हम सभी करते है, लेकिन जानकी अम्मलने उन पर संशोधन किया था।
वह संशोधन के बारे मे और पढ़ाई करने के लिए ब्रिटन गई थी, लेकिन उस समय दूसरे विश्व यूध्ध शोरू होने के कारण फिरसे वापस भारत आ गई थी। पोधे-बेल के संशोधन करने पर उनके नाम के ऊपर ही एक फूल का नाम “मगनोलिया कोबुस जानकी अम्मल” रखा गया था, जिसकी उन्होने खोज की थी। जानकी अम्मल भारत के आधुनिक बॉटनी (वनस्पतिशास्त्र) के मधर के नाम से जाने जाते है।
जानकी अम्मल का जन्म ब्रिटिशकल के मद्रास प्रांत के तेलीचेरी शहर मे 1897 मे हुआ था, और मद्रास मे ही 1984 मे उनकी मृत्यु हुई।
3. दर्शन रंगनाथन – प्रोटीन संशोधक
हमारे शरीर के विकास के लिए हम जो खाध्य पदार्थ का भोजन करते है उनमे से हमे प्रोटीन मिले वह जरूरी है। यह जानकारी सब कोई के पास होती है। यह प्रोटीन का विकास कैसे होता है उनकी खोज डॉ. दर्शन रंगनाथन ने की।
डॉ. दर्शन रंगनाथन ने बायोओर्गेनिक केमिस्ट्री(रसायनशास्त्र) और बायोलॉजी (वनस्पतिशास्त्र) दोनोंके निष्णात के रुपमे जाने गए। उनके संशोधनों के बाद कई रोगो की दवाइयाँ बनाने मे फार्मस्युटिकल कंपनियों को सहायता मिली थी।
उन्होने आईआईटी कानपुर अभ्यास किया था उसके बाद वह अमरीका मे भी पढ़ाई करने गई।
डॉ. दर्शन रंगनाथन का जन्म 1941 मे दिल्ही मे हुआ था, और उनकी मृत्यु 60 साल की आयु मे बीमारी की वजह से हुई थी।
4. असीमा चेटर्जी – मलेरिया-रोधी औषधियों के संशोधक ( रसायनशास्त्री )
एइड्स और केन्सर जैसी बीमारियाँ भले ही पूरे विश्व मे छा गई होगी, लेकिन सबसे ज्यादा मृत्यु जिस के कारण होती है उसमे मेलेरिया रोग का नाम आज भी सबसे आगे आता है। असीमा चेटर्जी ने ब्रिटीशयुग मे मेलेरिया की दवा खोजने की शुरुआत की थी।
उनके अभ्यास का विषय आयुर्वेदिक पौधे-बेल (मेडिकल प्लांट्स) था, इस लिए मेलेरिया के अलावा कई दवाइयो की खोज की थी। असीमा चेटर्जी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा “डॉक्टरेट ऑफ साइंस” की उपाधि प्राप्त करने वाली पहली महिला थी।
असीमा चेटर्जी का जन्म साल 1917 कलकत्ता मे हुआ था,2006 मे 89 साल की उम्र मे उनकी मृत्यु कलकत्ता मे ही हुई थी।
5. कादंबिनी गांगुली – भारत के दूसरे महिला डॉक्टर
कादंबिनी गांगुली भारत के दूसरे महिला डॉक्टर थे, यह तो कुछ भी नहीं आधुनिक वेस्टर्न मेडिसिन की पढ़ाई करने वाली वह पहली एशियाई महिला थी। उस जमाने मे मेडिकल क्षेत्रमे पढ़ाई करने के लिए उन्होने बहुत संघर्ष करना पड़ा था।
उन्होने डॉक्टर की पढ़ाई के इलवा राजनीति के क्षेत्र मे भी सक्रिय थे, उन्होने आज़ादी की लड़ाई मे भी आगे रहकर राजनीति की थी। कोयले की खान मे कम करती महिलाओ के आरोग्य सुधारने के लिए भी उन्होने बहुत काम किए।
डॉ. कादंबिनी गांगुली का जन्म बिहारके भागलपुर मे साल 1861 मे उनका जन्म हुआ, और साल 1923 मे कलकत्ता मे उनकी मृत्यु हुई।
6. इरावती कर्वे – प्रथम महिला एन्थ्रोपोलोजिस्ट
इंसान का आध्ययन, इंसान के समाज का अभ्यास, समाज की रीति-रिवाज का अभ्यास एन्थ्रोपोलोजिस्ट के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र मे अभ्यास करने वाली प्रथम देशकी महिला इरावती कर्वे थी।
मानव समाज, शरीरमे विविध संस्कृति के हिसाब से बदलाव होना, एशियन हिस्ट्री, भारत का इतिहास आदि क्षेत्र मे भी काम किया था। इसके इलावा नोट योग्य काम महिला शिक्षण का था।
उनका बर्मा की इरावती नदी के नाम के ऊपर से नामकरण किया गया था। अधिक अभ्यास करने के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन आर्थिक क्षमता खराब होने के कारण वह नहीं जा सकी। उस समय डॉ. जीवराज महेता (गुजरात के प्रथम मुख्यमंत्री) ने उनको आर्थिक रूप से मदद की थी।
इरावती कर्वे का जन्म अखंड भारत के बर्मा मे साल 1905 मे हुआ था, और साल 1970 मे भारत मे उनकी मृत्यु हुई।
7. अन्ना मनी – मौसम के पूर्वानुमान को सरल बनाने वाले वैज्ञानिक
मौसम का पूर्वानुमान करना एक कठिन काम है। लेकिन आजके इस टेक्नोलोजी के युग मे थोड़ा सरल हुआ है। एक समय था, जब मौसम का पूर्वानुमान करना बहुत ही कठिन काम था तभी अन्ना मणि ने इस क्षेत्र मे कैरियर की शुरुआत की मौसम के अभ्यास के लिये एक जगह पर निर्भर होने के बजाय देशभर मे विविध स्थानो पर स्टेशन खड़े करके उन्होंने नेटवर्किंग करने पर जोर दिया था।
अन्ना मनी ने “सूरज से निकलने वाले विकिरण का हमारी धरती वातावरण मे क्या प्रभाव पड़ सकता है?” विषय पर अभ्यास किया था। इसके बाद उनको इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिटीरियोंलोजी के डेप्युटी डिरेक्टर बनाया गया था।
उन्होने वातावरण मे ओज़ोन और पवन की ऊर्जा को माप ने के लिए अभ्यास किया था।
अन्ना मनी का जन्म साल 1918 मे हुआ, और मृत्यु साल 2001 मे हुई।
8. राजेश्वरी चेटर्जी – प्रथम माइक्रोवेव इंजिनियर
माइक्रोवेव ओवन के कारण माइक्रोवेव शब्द हमे अजनबी नहीं लगता, लेकिन विज्ञानमे इसका अभ्यास करना ज्यादा महत्व का हो जाता है। भारत मे यह काम पहली बार राजेश्वरी और उनके पति ने किया था। आज जगह जगह हमे देखने मिलते मोबाइल टावर मे से इस प्रकार के वेव्स ही निकलते है, इसी के कारण हम सब मोबाइल द्वारा बातचीत कर पाते है।
कर्नाटक मे इंजीन्यरिंग करने के बाद वह अमरीका तक जा कर पी.एच.डी. की उपाधि लेने वाली प्रथम महिला थी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान उन्होने ऐरक्राफ्ट- हवाई जहाज के एन्टेना पर संचालन किया था।
राजेश्वरी चेटर्जी का जन्म कर्नाटक मे साल 1922 मे हुआ था, और उनकी मृत्यु साल 2010 मे हुई।
9. रमण पिरामल (रमणदेवी) – बीजगणित (एल्जिब्रा) के महारथी।
रमण पिरामल का कौशल उनका बीजगणित (एल्जिब्रा) को लेकर था। भारत मे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्चमे बरसो तक कम करने वाले डॉ. रमण दुनिया की ज़्यादातर यूनिवर्सिटीयों मे गणित के विषय मे पढ़ाया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र मे ज्यादा अवार्ड पाने के अलावा उन्होने भारतमे विज्ञान के क्षेत्र मे दिया जाने वाला सर्वोच्च शीर्षक शांतिप्रिय भटनागर एवोर्ड भी प्रपट किया है। डॉ. रमण पिरामल जा जन्म साल 1948 मे तमिलनाडू मे हुआ था।
10. विभा चौधरी – ब्रह्मांड मे जिसके नाम का एक तारा है।
इन्टरनेशनल ऐस्ट्रोनोमिकल यूनियन ने हल ही मे एक तारे को नया नाम दिया, “विभा” यह नाम भारत के खगोलशास्त्री विभा चौधरी के अंतरिक्ष विज्ञान मे काम करने के बदले मे दिया गया।
1913 मे कलकत्ता मे जन्मे विभा चौधरी बोझोन नाम के कण की खोज की थी। यूरोप मे लार्ज हेडरों कोलाइडर नाम के महा प्रयोग के द्वारा विज्ञानी लोग गोड पार्टिकल्स(न्यूट्रोन) की खोज करने मे जूते हुए थे।
इनके द्वारा किए गए प्रयोग मे से एक प्रयोग दक्षिण भारत मे स्थित कोलार की खाली पड़ी हुई खान मे सबसे नीचे हुआ था। उस प्रयोग मे विभा चौधरी भागीदार थी। अमरीका मे नोबेल पुरस्कार विजेता विज्ञानी पेट्रीक ब्लेकेट के साथ उन्होने काम किया था।
11. कमल रणदीव – टिश्यू कल्चर के भारतीय रिसर्चर
टिश्यू कल्चर याने की कोशिका की कृत्रिम रूप से विकास करने की विधि पर संशोधन करने वाली प्रथम भारतीय महिला डॉ. कमल थे। 1960 मे उन्होने भारत की प्रथा टिश्यू कल्चर लेबॉरेटरी स्थापित की थी।
केनसर और बेकटेरिया के बिचमे क्या संबंध है, उसका अभ्यास किया था। उसके बाद वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केनसर रिसर्च के प्रथम डिरेक्टर बने थे। केनसर के अलावा ल्यूकेमिया, आदि मे उन्होने संशोधन किए।
भारत मे महिला वैज्ञानीओ को संघठित करके कमल रणदीप ने वुमन सायंटिस्ट एसोसिएशन की स्थापना की थी।
महाराष्ट्र के पुणे मे साल 1917 मे जन्म हुआ था, और 2001 मे उनकी मृत्यु हुई थी। भारत मे उनको पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।