Chandrayaan-1 and chandrayaan-2 के बारे मे जानने से पहले हम चंद्रमा (Moon) के बारे मे कुछ समजते है।
आप सभी जानते ही होगे की पृथ्वी ग्रह का सिर्फ एक उपग्रह है, जिसे हम चंद्रमा के नाम से जानते है, इसलिए हमे इसके बारे मे कुछ जानकारी मिल जाए तो कितनी गर्व की बात होगी। हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी औसत 3,84,000 किलोमीटर है, इसलिए हम चंद्रमा को इतना साफ देख सकते है।
चंद्रमा को देखकर हमे यह बात पहले दिमागमे आती होगी की इसकी साइज़ (व्यास) कितनी होगी ? विज्ञान की किताबों मे लिखा है की 3,476 किलोमीटर व्यास है, यह पृथ्वी के व्यास से लगभग एक चौथाई हिस्सा है।
वजन की बात की जाए तो पृथ्वी के भार से 81 गुणा कम चंद्रमा का भार है। चंद्रमा की सतह पर गुरुत्वाकर्षण की शक्ति पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के छठे भाग जितनी है।
हम पृथ्वी पर सांस ले सकते है, लेकिन चंद्रमा पर तो वायुमंडल है ही नहीं, इस लिए चंद्रमा की सतह पर पनि भी नहीं है। इसी लिए अभी तक वहा पर किसी का जीवन होने का कोई प्रमाण मिला नहीं है।
चंद्रमा (Moon) से हमे क्या उम्मीद है ?
देखा जाए तो चन्द्रमा के अस्तित्व में आने और उसके उत्तरोत्तर विकास से जुड़ी जानकारी को हासिल करके हमें सम्पूर्ण सौरमंडल Solar System को जानना और हमारी पृथ्वी Earthका इतिहास समझने में बढ़ावा मिलेगा।
चंद्रमा (Moon) का तापमान क्या है ?
चंद्रमा के जिस भाग पर सूर्य की सीधी रोशनी गिरती है, उस भाग पर 130 डिग्री सेल्सियस तक तापमान चला जाता है, इस कारण यहा अत्यधिक ज्यादा गर्मी रहती है। रात मे चंद्रमा पर शून्य से भी बहुत नीचे 180 डिग्री सेल्सियस तक तापमान चला जाता है, इस कारण उसे अत्यधिक कम तापमान याने की जबर्दस्त ठंड वाली जगह कहा जाएगा।
चंद्रमा गोलाकार है और हमारी पृथ्वी ग्रह की परिक्रमा करता रेहता है, इसके कारण हमारी पृथ्वी की सतह पर से उसे देखा जाए तो उसका एक साइड का भाग ही हमे दिखाई देगा। इसका कारण यह माना जाता है की, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ( Gravitational force ) चंद्रमा को परिक्रमा (Circumambulation) करने मे यानि की अपनी धुरी पर घूमने मे चंद्रमा की गति कम होने लगती है।
इसलिए चंद्रमा को हमारी पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने मे लगने का समय 27 दशमलव तीन दिन के बराबर माना जाता है, सरल भाषा मे कहा जाए तो हमारी पृथ्वी का एक परिक्रमा (चक्कर) लगाने के लिए चंद्रमा को 27.30 दिन लग जाते है।
चंद्रमा (Moon) पर जीवन है या नहीं है ?
अभी तक चन्द्रमा पर जीतने मिशन किए गए थे, उनमे से नासा और कई दूसरे देश ने ऐसे कोई संकेत प्राप्य नहीं किया, जिसे हम कह सके की वहा पर जीवन शक्य है या नहीं। इसलिए अभी तक कोई ईएसए प्रमाण नहीं मिला है की चंद्रमा पर जीवन है।
चंद्रयान-1 के बारेमे कुछ जानते है।
इसरो भारतीय अन्तरिक्ष अनुसाधन संगठन ISRO भारत देश के वैज्ञानिक द्वारा आंतरिक्ष मे खोज करने के लिए भारत देश द्वारा बनाया जानेवाला केंद्र है। भारत देश के वैज्ञानिको द्वारा बनाया जानेवाल चंद्रयान-1 भारत का चंद्रमा पर पहला मिशन था।
चन्द्रयान-1 भारत देश के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन यानि जिसे हम रॉकेट के नाम से सम्बोधन करते है, उसका नाम “पीएसएलवी-सी II” है, उसके द्वारा चंद्रयान-1 को 22, अक्टूबर, साल 2008 के दिन श्री हरिकोटा मे स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से भेजा गया था।
चंद्रयान-1 पर कितने उपकरण भेजे गए थे ?
चंद्रयान-1 पर ग्यारह वैज्ञानिक उपकरण रखवाए गए थे। इन उपकरणो मे से पाँच उपकरण भारतीय थे, और बचे उए मे से ई एस ए के 3 उपकरण और नासा के 2 उपकरण थे और बुल्गारियाइ विज्ञान अकादमी का 1 उपकरण था।
चंद्रयान-1 ने आंतरिक्ष मे स्थित चांदमा की 3400 से भी ज्यादा परिक्रमाएं की थी, और 312 दिनो तक कम किया, चंद्रयान-1 ने 29 अगस्त 2009 तक कम किया था।
चंद्रयान-1 से हमे क्या उपलब्धियाँ मिली ?
चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के क्षेत्र मे बर्फ के रूप मे बहुत सारा पानी जमा हुआ है, उनकी खोज की। चंद्रमा की सतह पर मैग्निशियम, एल्युमिनियम और सिलिकॉन होने की खोज भी की। चन्द्रमा का वैश्विक मानचित्र बनाना इस मिशन की एक और बड़ी उपलब्धि थी।
चंद्रयान-2 को कब और कहा से छोड़ा गया था ?
चंद्रयान-2 को प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-एमके III एम-1 के द्वारा श्रीहरिकोटा से 15 जुलाई साल 2019 के दिन 21:21 बजे अंतरिक्ष में छोड़े जाने की योजना थी।
उसके बाद कुछ तकनीकी गड़बड़ी के कारण उसे साल 2019 मे 22 जुलाई के दिन मे 02:41 PM बजे छोड़ा गया।
चंद्रयान-2 और चंद्रयान-1 मे क्या क्या फर्क है ?
Chandrayan-2 मिशन मे कुछ तकनीकी खराबी के कारण बीच मे से छोड़ना पड़ा था, यह बात तो हम सब जानते ही है, भारत देश द्वारा चन्द्र पर भेजा जानेवाला चंद्रयान-2 असल मे चंद्रयान-1 का ही परिणाम है। क्यो की चंद्रयान-1 से ज्यादा कम नहीं करवाया जा सकता था।
इसलिए चंद्रयान-2 मे रोवर(प्रज्ञान), लैंडर(विक्रम) और ओर्बिटर को शामिल किया गया था। रोवर “प्रज्ञान” को चंद्रमा की सतह पर भेजा जानेवाला था। जिसे वैज्ञानिक परीक्षण के लिए खास तौर पर मनाया गया था।
विक्रम लैंडर के द्वारा रोवर (प्रज्ञान) को चंद्रमा पर उतारा जानेवाला था। लैंडर मे चंद्रमा की सतह पर और उपसतह पर परीक्षण करने के लिए 3 वैज्ञानिक पे-लोड लगाए गए थे।
ओर्बिटर के द्वारा चंद्रमा की सतह का मानवचित्र बनाना और चंद्रमा का वायुमंडल कैसा है उनकी जानकारी इकट्ठी करनेका था। उसमे बाहरी वातावरण की जांच करने के लिए 8 वैज्ञानिक पे-लोड रखे गए थे।
रोवर (प्रज्ञान) मे परीक्षण के लिए वैज्ञानिक 2 पे-लोड लगाए गए थे। जिससे हमे चंद्रमा की सतह के बारे मे ज्यादा जानकारी मिल सकती थी। रोवर चंद्रमा के ऊपर उतारने के बाद 500 मीटर तक चल सकता है।
चंद्रयान-1 की वजन को उठाने की क्षमता 1380 किलोग्राम थी। इसलिए ज्यादा वजन लेजया नहीं सकता था। चंद्रयान-2 को उससे ज्यादा बेहतर बनाते हुए लिफ्ट ऑफ भर 3850 किलोग्राम किया गया।
चंद्रयान-2 का काम चंद्रमा की सतह पर उतरकर अध्ययन करने के लिए रोवर को सही तरह से फिट करने का था, ताकि चंद्रयान-1 के कार्यो मे बढ़ोतरी की जाए।
अभी तक दुनिया की अन्तरिक्ष एजेंसियो द्वारा चन्द्र की सतह पर सॉफ्ट लेंडीग के 38 प्रयास किए गए है जिनमे से 52% सफलता के अवसर मिले है।