नारदजी का परिचय :
नारायण का निरंतर स्मरण करनेवाले देवर्षि नारद को हर कोई जानता है। सभी पुराणो मे उनकी चर्चा होती है। किसी भी धार्मिक या पौराणिक कार्यक्रम मे देवर्षि नारदजी का पात्र अवश्य आता है। एसी कथाओ से उनके व्यक्तित्व के बारेमे ज़्यादातर जानकारी मिल जाती है।
देखा जाए तो नारदजी भगवान के संदेश वाहक है। शास्त्रों मे नारदजी को भगवान का मन कहा गया है। इसीलिए नारदजी को सभी जगहो पर महत्व का स्थान मिला है।
सिर्फ देवो ही नहीं लेकिन दानवो भी उनका आदर करते है। जरूरत पड़ने पर सभी उनसे सलाह-सुचन लेते थे।
हिन्दू शास्त्रो के अनुसार देवर्षि नारद ब्रह्माजी के मानस पुत्र है। नारदजी भगवान विष्णु के अनन्य भक्त है। नारदजी सभी लोगो मे इच्छा अनुसार विचरण करते है।
वे किसी भी संदेश को एक लोक मे से दूसरे लोक मे और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुचाने का कार्य करते थे। देवर्षि नारद धर्म का प्रचार करते-करते सभी के कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते है।
नारदजी संभवित संकटों को अगाऊ से ही जान जाते थे, और सभी को सचेत कर देने वाले दीर्घ द्रस्टा और ज्ञानी व्यक्ति थे। वे हमेशा जागृति फेलाने का कार्य करते थे।
नारदजी किसी को भी सही और कड़वी बात कहने मे संकोच नहीं रखते थे। पुराणो के अनुसार नारदजी परोपकार, निःस्वार्थ, दीर्घद्रष्टा जेसे गुणो का उपदेश देते दिखाई दिये है।
नारद शब्द का अर्थ :
नारद शब्द का एक विशेष अर्थ है, नार शब्द का अर्थ ज्ञान होता है और द का अर्थ देना होता है, इस का अर्थ है की जो तीनों लोगो मे ज्ञान देते है उसे नारद कहते है।
जो अज्ञानता का नाश करे वह नारद है, नारदजी अपने ज्ञान का हमेशा से ही दान करते आए है। नारदजी का उल्लेख ऋग्वेद और अथर्व वेद मे भी किया गया है।
एक कथा के अनुसार एक बार नारदजी ने प्रजपति दक्ष के हर्यस्व, शवलाश्व आदि पत्रो को योगशास्त्र का उपदेश दे कर उनको त्यागी बना दिया था, इस बात से गुस्सा हो कर दक्ष राजा ने नारदजी को शाप दे दिया की आप दो पल से ज्यादा समय एक जगह नहीं ठहर सकोगे।
नारदजी ने इस शाप को दूसरे लोगो के लिए वरदान मे बादल दिया। नारदजी हमेसा लोगो पे अनेवाले संकटों से सचेत करते रहे।
देवर्षि नारदजी का महत्व :
देवर्षि नारदजी का महत्व पुरानो मे विशेष रूप से किया गया है। नारदजी ने महाराज युधिष्टिर को राजनीति के लिए जो उपदेश दिया था वह उच्चकोटी का था।
जब युधिष्ठिर छलकपट के कारण ध्युत मे हार जाता है, और उनको वनवास दिया गया उस समय नारदजी ने कौरवो की सभा मे कहा था की दुर्योधन और शकुनि के दोष के कारण आज से 14साल के बाद भीम और अर्जुन के हाथो समग्र कुरुवंश का नाश होगा। देवर्षि नारद किसिके शत्रु भी नहीं है और मित्र भी नहीं है।
नारदजी का उपदेश इतना ह्रदयस्पर्शी होता है की किसी कठोर ह्रदय वाले पर भी असर कर जाता है।
नारदजी ने महर्षि वाल्मीकि को रामचरित लिखने का उपदेश दिया और आदि काव्य रामायण की रचना हुई। नारदजी ने वेदव्यासजी को श्रीमद भागवत का मर्म सुनाया था, उनके उपदेश से ही प्रभावित हो कर वेदव्यासजी ने भागवत की रचना की।
नारदजी के अनुसार क्षमा करना सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं। क्योंकि परमेश्वर खुद सत्यस्वरूप है।
जो मनुष्य किसी भी प्राणी को सताता है उसका धर्म और सभी अनुष्ठान सभी व्यर्थ है। आत्मा को जीतना सबसे बड़ा ज्ञान है।
देवर्षि नारद के उपदेश :
देवर्षि नारदजी जन्म से ही वैरागी होने पर भी उनके उपदश गृहस्थो के लिए बहुत ही उपयोगी है।
देवर्षि नारद ने कई लोगो के जीवन को बदल दिया है, इन मे से रत्नाकर डाकू का नाम प्रसिध्ध है। उनको नारदजी ने संसार की वास्तविकता को समजाया और राम का नाम जप ने को कहा। प्रचंड तप करने के कारण वो डाकू मे से ऋषि बन गए।
राजकुमार ध्रुव को भी देवर्षि नारदजी ने ही ॐ नमो भगवते वासुदेवय मंत्र का जाप करने का मार्गदर्शन दिया था।
देवर्षि नारदजी का व्यक्तित्व :
महाभारत के सभापर्व के 5वे अध्याय मे नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।
इनके अनुसार देवर्षि नारदजी आत्मज्ञानी, वेद और उपनिषदों का मर्मज्ञ, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, न्याय और धर्म के तत्व के जानकार, संगीत विशारद, देवगुरु बृहस्पति जेसे महा विद्वानो की शंका का समाधान करनार, धर्म, अर्थ, ज्ञान और मोक्ष के ज्ञाता, सभी धर्मो मे प्रवीण,सदाचारी, परम तेजस्वी, सभी विद्याओ मे निपुण, देवताओ के पूज्य, इतिहास और भूतकाल की बातो के जानकार, सभी के हितकारी और सर्वत्र गति करने वाले देवर्षि नारदजी का व्यक्तित्व और कार्यो अत्यंत विशिष्ट है। उनके उपदेश लोगो मे हितकारी है।