खुद को बेहतर बनाने का अवसर दशहरा क्यो मनाया जाता है ?
भगवान श्री राम ने रावण का वध किया, इस के आनंद मे हम सब दशहरे का त्यौहार मनाते है।
इस दशहरे का त्यौहार अधर्म पर धर्म का, अंधकार पर प्रकाश का, असत्य पर सत्य का विजय का दिन है। इस दिन रावण का जिसके दश शिर थे उसका इस दिन नाश हुआ था,इस लिए दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है।
माँ दुर्गा ने, भगवान श्री राम ने आसुरी शक्ति को परास्त कर के अपनी प्रजा जन को उनके त्रास और भय से मुक्त किया था। इस खुशी मे हम परंपरा से इस उत्सव को मानते आ रहे है।
खुद पर विजय प्राप्त करने का अवसर
दशहरा एक एसा त्योहार है जिस दिन राक्षसी शक्तिओ को पराजित किया गया था। और उनके कष्ट और भय से लोगो को छुटकारा मिला था।
लेकिन अब हमे अपने खुद के कष्ट से मुक्त होना होगा, किसी ओर से ज्यादा हम अपने आप को ज्यादा सताते है। ज़िंदगी जीना अपने आप मे एक कला है, कोई व्यवसाय नहीं है।
राम और रावण दोनों हमे बिराजमान है। हम सब राम का दिखावा करते है और रावण को छुपाते है।
गंदगी सिर्फ कचरे मे ही नहीं होती, कोई मनुष्य भी तन और मन से गंदगी से भरा होता है। लोभ, लालच, वासना, स्वार्थ, ईर्ष्या, दंभ, आडंबर, भ्रष्टाचार और एसे रावण जैसे कई दुर्गुणों को अपने आप मे छुपा कर अच्छे मुखोटा पहन कर दिखावा करता है।
इसलिए हमे खुद पर विजय प्राप्त करनी चाहिए, हमे दशहरे दिन यह संकल्प करना चाहिए की जो हम मे बुराई है (जी सिर्फ हमे ही पता होता है), जो हमारे भीतर छुपी होती है वो आसुरी वृत्ति को दूर करे, राम को जगाए और रावण को भगाये। यह सब मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं है।
माँ दुर्गा से भक्ति
माँ दुर्गा जो शक्ति स्वरूप है उनसे हमे यह प्रार्थना करनी चाहिए की, है माँ मुझे खुद से लड़ ने की हिम्मत दे। यह मैली हो रही शरीर रूपी चादर को सदगुणो से धोने की शुरुआत करे।
कुबुद्धि के रास्ते चल ने से पहले विवेक रुपी हथियार का उपयोग कर के अच्छे और बुरे को समज़ कर अपने जीवन को अच्छा और पवित्र बनाए, तो कम से कम हमारे अंदर तो राम राज्य अवश्य बनेगा।
शक्ति- सामर्थ्य की प्रार्थना
असुर और स्वार्थी लोग दूसरों का श्रेय या सुख देख नहीं शकते। भगवान श्री कृष्ण ने गीता मे भी कहा है, की दैवी संपाती मोक्ष के लिए और आसुरी शक्ति बंधन के लिए माना जाता है।
स्वार्थी लोग विनाश की ओर जा कर पाटन का मार्ग अपनाते है। एसे असुरो से बचने के लिए माँ दुर्गा से शक्ति और सामर्थ्य मांग ने का दिन यानि दशहरा।
मानव जीवन मे धर्मो के मूल्यो को बनाए रखने के लिए शक्ति की प्रार्थना अति आवश्यक है।
दशहरे के इस पवन अवशर पर हम मे छुपी आलस को दूर भागना चाहिए और माँ दुर्गा से शक्ति की उपासना करनी चाहिए। माँ को प्रार्थना करनी चाहिए की इस संसार की चमक-दमक से आकर्षित हो कर, असीमित भोग-विलास कर के हम शक्ति हिन हो गए है। हमे शक्ति दो, हमारी अज्ञानता दूर करके हमे बुद्धि और शक्ति दो। और अशुरी वृत्ति से मुक्त करो।
दशहरे की पौराणिक कथा
महिषासुर नाम का एक राक्षस था। वह देवो और मनुष्य को बहुत ही यातना-पीड़ा पाहुचता था। एसी स्थिति मे पूरी तरह से निराश हुए देवो ने भगवान ब्रह्मा,विष्णु और महेश की आराधना की।
देवो की प्रार्थना सुन कर प्रसन्न हुए आद्य देवो महिषासुर के ऊपर बहुत गुस्से हुए। और उनके पुण्य के प्रकोप से एक दैवी शक्ति का निर्माण हुआ।
दैवी शक्ति को देख कर सभी देवो और मनुष्यो मे खुशी की लहर छा गई। और सभी जन दैवी शक्ति की जय जयकार करने लगे, और उनकी पूजा-अर्चना करने लगे।
दैवी शक्ति ने निरंतर नौ दिन तक उस आसुरी महिषासुर से युद्ध किया, और उस पापी महिशासुर का वध किया। इस प्रकार आसुरी शक्ति को दूर भगाया और दैवी संपाती की पुनः स्थापना कर के देवो को अभय प्रदान किया।
यह दैवी शक्ति स्वरूपा माँ यानि हमारी जगदंबा माँ। माँ जगदंबा की आराधना कर के शक्ति प्राप्त कर ने का दिन यानि दशहरा।
खुद को जीत ने का पर्व दशहरा
उत्सव जो हमें विजयी होने के लिए प्रेरित करते हैं, हमें शक्ति, बुद्धि, ओजस, धार्मिकता, राष्ट्रीय नैतिकता, हिम्मत, वीरता, धीरता, शौर्य, शील, संस्कार आदि प्रदान करते हैं। और रक्षा धर्मी बनने को प्रेरित करते है।
दशहरा हमे राष्ट्र धर्म संस्कृति के प्रति पूरी शक्ति से हमारा फर्ज़ अदा करने को भी कहता है। दशहरा ज्यादा विकास करने के लिए होता है। जो विजय को पचा शके वो सच्चा वीर कहलाता है।
पर्वो की प्राचीन परंपरा का सन्मान करना चाहिए, और हम मे छुपी आलस, अतिशय भोग-विलास, लघुता ग्रंथि, अत्याचार,भ्रष्टाचार, राष्ट्रद्रोह, छल-कपट जेसे रावनों को जीतने के लिए समय ने पड़कर फेका है, बस जरूरत तो है अपने आप को जीतने की।
राष्ट्र संस्कृति की बात आती है तो तब जाती धर्म सब छोड़ कर केवल राष्ट्र धर्म संस्कृति के प्रति आदर और एकता से व्यक्त करना चाहिए।