स्वामी विवेकानंद द्वारा बताई जानकारी जो युवाओं के लिए प्रेरक हो सकती हैं।
साल का पहला महिना यानि जनवरी, और जनवरी की 12वी तारीख अर्थात भारत के लाडले राष्ट्रभक्त और अकेला वह नायक जिसने क्रांति की महान मशाल के साथ अंधेरे भारत को जगाने का काम किया, एसे स्वामी विवेकानंदजी का जन्मदिन।
जिस की आवाज में मृतक को बैठा करने की शक्ति है, जिसके संकल्प में आत्म -निर्भरता की शक्ति है, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को जगाने की शक्ति रखता है, जो युवा शक्ति में विश्वास रखता है, जो कायरता को पाप मानता है, जो जीवन के विकास के लिए त्याग और तपस्या को मूल चीज मानता है, जो एक अजेय शक्ति को उद्घाटित करता है, जो निरंतर संघर्ष करके, भीतर से जागृति और बिना रुके, बिना भटकते हुए, इच्छित लक्ष्य को साकार करने का एक महान संदेश देता है।
स्वामी विवेकानंद का महान संदेश :
- एक ही विचार को पकड़े, और उसी विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए।
- निडर बनो, भय कमजोरी का संकेत है, चाहे दुनिया हंसे या नफरत करे, मनुष्य को अपना कर्तव्य करना चाहिए। उठो और एक नायक बनो।
- निराश न हों, अपने जीवन को एक महान आदर्श के कारण समर्पित करें, यही जीवन का सही मूल्य है।
- साहसी और मजबूत बनें।
- नुकसान हो फिर भी साहस से सच बोलो।
- खुद पर विश्वास रखो, क्योंकि खुद पर विश्वास रखेंगे तभी भगवान पर विश्वास रख पाएंगे।
- आलस्य से मत बैठो, उठो, जागो और बिना रुके लक्ष्य को प्राप्त करो।
- अपने शरीर और मन को मजबूत करें।
- आप खुद के सहायक बने, कोई मदद कभी भी बाहर से नहीं आती है।
- प्रत्येक आत्मा में असीम शक्ति होती है, इसलिए नकारात्मक सोचना नहीं चाहिए।
- अंधविश्वास से मुक्त हो, चमत्कार और अंधविश्वास का पागलपन हमेशा मूर्खता के लक्षण होते हैं।
- शिक्षा सभी बुराइयों की पीड़ा का इलाज है।
- किसी अवतार का इंतजार किए बिना खुद ही एक नबी(पैगंबर) बनें।
- युवाओं काम करना शुरू करें, यह वास्तविक समय है, एक देश भक्त बनो, एक नये भारत के निर्माण के लिए त्याग और सेवा को अपनाए।
- सैकड़ों उत्कृष्ट कार्य करने के लिए अब शेरों की आवश्यकता है, जो देश के लिए कुछ भी करने के लिए सक्षम होंगे।
स्वामी विवेकानंदजी के अनुसार शिक्षा का अर्थ :
मात्र शिक्षा नहीं बल्कि देश के प्रति सम्मान देश की सभी बुराइयों को दूर करने का इलाज माना जाता है।
स्वामीजी के अनुसार शिक्षा आपके दिमाग मे भरी जाने वाली सभी सूचनाओ का एक ढेर है, जो आप के जीवन मे बिना पचे पड़ी रहती है।
हमें जीवन को आकार देने, मानव-आकार देने, चरित्र-आकार देने वाले विचारों को अपनाने और ध्यान करने की आवश्यकता है। यदि आपने पांच विचारों को अपने जीवन मे उतार लिया है,
और उन्हें अपने चरित्र में समा दिया है, तो आप उस व्यक्ति की तुलना में अधिक शिक्षित हैं, जिसने पूरी लाइब्रेरी का अध्ययन किया है।
चन्दन के बोझ को लेकर चलने वाला गधा सिर्फ बोझ को ही समझता है, चन्दन के मूल्य को नहीं समझता।
यदि शिक्षा और जानकारी एक समान होती, तो पुस्तकालय दुनिया के सबसे बड़े ज्ञानी होते, और विश्वकोश महान संत बन जाते।
इसीलिए आदर्श यह है कि हमारे देश की सभी आध्यात्मिक और व्यावहारिक शिक्षा हमारे हाथों में होनी चाहिए।
राष्ट्रीय प्रणाली होने के साथ-साथ जहाँ तक संभव हो राष्ट्रीय पद्धति का ज्ञान भी होना चाहिए।
स्वामी विवेकानंदजी के अनुसार सच्ची शिक्षा :
ऐसी शिक्षा का अर्थ क्या है? यदि जो शिक्षा मनुष्य को चुनौतियों का सामना करने की क्षमता नहीं सिखाती है,
जो शिक्षा आम जनता को जीवन के संघर्षो से लड़ने की हिम्मत नहीं देती, जो परोपकार के लिए उदारता नहीं दिखाती, एसी शिक्षा, शिक्षा के योग्य नहीं है।
सच्ची शिक्षा तो वह है जो मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है। वर्तमान में आप स्कूल और कॉलेज में जो शिक्षा प्राप्त करते हैं,
वह आपको लापरवाह कर देती है, और आप सिर्फ किसी मशीन की तरह काम करते रहते है।
स्वामी विवेकानन्दजी का मानना है कि एक प्रशिक्षित दिमाग एक ऐसा दिमाग है, जो ईर्ष्या को त्याग देता है, एक ऐसा दिमाग जो दूसरों को खुश रहने और खुद को खुश रखने के लिए प्रेरित करता है।
अगर भारत में अभी एक सब से बड़ा पाप है तो यह की, इस तरह की गुलामी है। हर कोई ऑर्डर देना चाहता है। कोई भी आदेश लेने को तैयार नहीं है।
पहले आज्ञा का पालन करना शिखों, तो आज्ञा को पालन कराने का अधिकार अपने आप आ जाएगा।
सच्चे देश प्रेमियो की जरूरत है।
यदि आप ईर्ष्या से दूर रहेंगे तो आप भविष्य में महान कार्य कर पाएंगे।
भगवद गीता के श्लोक ‘संभवामि यूगे यूगे’ के आधार से यह बात आज तक प्रचलित होती रही है की,
भगवान किसी ना किसी अवतार मे जरूर आएंगे, लेकिन हम यह बात को भूल जाते है की हम ही कलयुग को जीने दे रहे है।
हमे खुद ही एक योद्धा बनना पड़ेगा, जो सभी मुश्किलों से लड़ जाए। हमे प्रकाश के दूत बनने की जरूरत है, देश को आज जरूरत है सच्चे देश -भक्त की।
सही और गलत का निर्णय हमे खुद ही करना होगा।
स्वामी विवेकानंदजी देश-प्रेम की उपलब्धि के लिए तीन चीजों को आवश्यक मानते हैं:
प्रथम हृदय की भावना, दूसरा बुध्धि या तर्क-शक्ति और तीसरा सबसे महत्व का प्रेम, प्रेम मे एसी शक्ति है जो किसी भी असंभव द्वार को खोल देता है।
प्रेम दुनिया के सभी रहस्यों का प्रवेश द्वार है।