विघ्न विनायक श्री गणेश:
श्री गणेशाय नमः हर शुभ काम की शुरुआत में, सबसे पहले गणनायक श्री गजानन गणपतिजी की पूजा की जाती है।
माना जाता है की, जब भगवान शिव और माता पार्वती ॐ का ध्यान कर रहे थे तब श्री गणेशजी अचानक ॐ से प्रकट हुए। श्री गणपतिजी का सिर एक हाथी का सिर है, इसलिए श्री गणेशजी निरूपाधि का सिर ब्रह्मरूप है।
देवताओं में श्री गणपतिजी का प्रथम स्थान है:
मनुष्य का जीवन इच्छाओं, आशाओं और आकांक्षाओं से भरा होता है, और उसकी सफलता के लिए उसके दिल में एक भारी भावना होती है। लेकिन मनुष्य की इच्छाएँ या आकांक्षाएँ अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं होती हैं। इसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता होती है।
कई बार पूरी कोशिस की होती है, लेकिन फिर भी सफलता हाथ नहीं लगती। एसा होता है, तब मनुष्य सफलता के लिए देवताओ की पुजा करते है। सफलता के लिए देवताओ की कृपा की याचना करते है।
ऐसे देवताओं में पहला स्थान गणपतिजी का है। प्रत्येक हिंदू व्यक्ति अपने शुभ अवसरों के लिए सांगोपांग निर्वाण को पार करने के लिए गजानन की प्रार्थना करता है। गणनाथ गणेशजी को संकटमोचक माने जाते है। हर अच्छा काम उनकी याद और प्रार्थना से शुरू होता है।
शुभ कार्यो मे गणेशजी का महत्व:
गणनाथ गणपतिजी की मूर्ति किसी भी सनातन धर्मी व्यक्ति के घर में प्रवेश करते हुए ही दिखाइ पड़ती है। घर के अंदर प्रवेश होते ही या फिर घर के बाहर जाते समय विघ्नहरता गणपतिजी का स्मरण किए बिना शायद ही कोई काम की शुरूआत होती होगी।
शुभ कर्मों में गुरुदेव, आचार्य या ब्राह्मण प्रारंभ में गणपति पूजन करेंगे, स्थापना स्मरण और पूजन के बाद ही अन्य अनुष्ठानों में आगे बढ़ते है।
कोई भी कवि गणेशजी के आचरण से अपनी कविता शुरू करते हैं और मंगलाचरण गजानंद गणपतिजी के स्मरण से शुरू होता है।
गणपतिजी सनातन हिंदुओं के सबसे प्रतिष्ठित देवता हैं। श्री गणपति को प्रसन्न किए बिना कल्याण की प्राप्ति संभव नहीं है।
श्री गणेशजी बाधाओ को दूर करने वाले:
भारत आदिकाल से आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न रहा है। आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न ऋषियों ने कई बाधाओं को दूर करने के उद्देश्य से श्री गणपतिदेव की कई स्मृतियाँ और प्रथम उपासनाएँ लिखी हैं।
यदि शक्ति के रूप में पूर्व भगवान श्री विष्णु, भगवान श्री शंकर या दुर्गामाता हैं, लेकिन सभी कार्य निर्विघ्न पार करने के लिए श्रीगणेशजी की पूजा और उनका स्मरण आवश्यक है। जो सभी बाधाओ को नष्ट कर देने मे सक्षम है।
श्री गणेशजी की अद्भुत विशेषता यह है कि उनके स्मरण मात्र से ही बाधाएं दूर हो जाती हैं, उनकी याद और पूजा से ही सभी कार्य बिना बाधा के सम्पन्न हो जाते हैं। श्री गणेशजी तैंतीस कोटि देवी-देवताओं के आराध्य देव हैं।
सभी शुभ कार्यो मे श्री गणेशजी का प्रथम स्थान:
जन्म से लेकर मृत्यु तक, श्री गणेशजी के साथ सनातन धर्मी हिंदुओं का संबंध निर्बाध रूप से जारी रहता है। उसके लिए, हर काम की शुरुआत में, श्री गणेश की याद और प्रशंसा सबसे आवश्यक कर्तव्य है।
कोई भी खत या कोई पुस्तक को लिखने से पहले ‘श्री गणेशाय नमः’ लिख कर ही आगे लिखना शुभ माना गया है। विघ्नो को नष्ट करने वाले गणपतिजी भगवान शंकर के समान ही सरलता से प्रसन्न होने वाले, दयालु और आनंद का एक रूप हैं।
श्री गणेशजी एक भारतीय महान आदर्श हैं। उनके उदार चरित्र से दुनिया सुगंधित हो गई है, केवल इतना ही नहीं, बल्कि उनकी विशेषता यह है कि उनके अंगों, वेशभूषा, आसन-हथियारों आदि के साथ भी यह एक सराहनीय विधि का सुझाव करते है जिससे मानव के हितों की रक्षा होती है।
माता पार्वती के आदेश का पालन करना:
श्री गणेशजी ने माता पार्वती के आदेश के अनुसार सख्त तत्परता के साथ द्वारपाल का कार्य किया था। पिता महादेवजी को गुस्सा आ गया लेकिन उन्होंने अपनी माँ के आदेशों के खिलाफ उन्हें स्नानघर में प्रवेश नहीं करने दिया।
उन्होंने कर्तव्य के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। ऐसे अनुकरणीय चरित्र से श्री गणेश अद्वितीय और प्रशंसनीय हैं।
जिस प्रकार श्री गणेशजी रिद्धि-सिद्धि-बुद्ध के दाता हैं, उसी प्रकार उनके अद्भुत रूप के दर्शन से भी सुख-समृद्धि को प्रदान करने वाले हैं।
श्री गणेशजी की बुद्धि-शक्ति के दर्शन :
गणेशजी बौद्धिक वैभव के अतुलनीय खजाने के समान है और इसीलिए उन्होंने वेदव्यासजी द्वारा लिखित महाभारत जैसी विशाल और अनूठे ग्रंथ का लेखन पूरा किया था।
पृथ्वी की परिक्रमा करने मे प्रथम आने का सम्मान पाने वाले गजानन अपनी अपार बुद्धिमत्ता का दर्शन कराते है। सभी देवताओ के साथ पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करके प्रथम आने का सम्मान भी उन्होने अपनी बुद्धि के बल पर ही किया था।
श्री गणेशजी की पुजा-अर्चना कभी भी निष्फल नहीं जाती, उनको सच्चे मन से याद करने से मनुष्यो को अपना मांगा फल अवश्य मिलता है।
श्री गणेशजी की परिक्रमा:
पृथ्वी पर राम का नाम लिख कर उसकी परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है, क्यूंकी राम के बिना पृथ्वी का कोई हिस्सा नहीं है।
एसा कहा जाता है की स्वामी कार्तिकेय और श्री गणेशजी मे से जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आयेगा उसका विवाह प्रथम किया जाएगा, एसा माता-पिता ने सोचा, और उन दोनों भाइयों को कहा।
स्वामी कार्तिकेय तो महान समर्थ थे, वो तो तुरंत ही पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। लेकिन भारी शरीर वाले गजानन ने सोचा कि उसे अपनी बुद्धि से काम लेना होगा।
उन्होने अपने माता-पिता को बुलाया और उन्हे साथ मे बिठाया, और उनकी परिक्रमा करने लगे। माता पार्वती और पिता शंकर को कुछ समझमे नहीं आया और गणेशजी को पूछा की ये क्या कर रहे हो तब श्री गणेशजी बोले माता और पिता की परिक्रमा यानि पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा, और वो मेने कर दी।
भगवान शंकर और माता पार्वती तो धन्य हो गए। स्वामी कार्तिकेय को आने मे तो काफी समय लगा। उन्होने आ कर देखा तो गणेशजी की शादी की तैयारी हो गई थी।
इस प्रकार श्री गणेशजी ने अपनी बुद्धि से माता-पिता की परिक्रमा कर के प्रथम आये।
श्री गणेशजी की उत्पत्ति:
माता पर्वती एक बार स्नानघर मे स्नान करने के लिए जा रहे थे, तब अपने पुत्र गणेशजी को दरवाजे के पास खड़े रहने के लिए कहा और कहा की जब तक मैं स्नान करूँ और बाहर न आऊँ, तब तक किसी को मत आने देना।
थोड़ी देर मे भगवान शिव वहा पर पधारे और पर्वतीजी के बारे मे पूछा, तो गणेशजी ने कहा की वे स्नान करने के लिए गए है।
भगवान शिव स्नानाघर की तरफ जाने लगे, इतने मे ही गणेशजी ने उन्हे रोका और कहा की, माताजी की आज्ञा है की किसि कों भी अंदर आने नहीं देना है। इस लिए मै आपको अंदर नहीं जाने दूंगा।
भागन शिव की आंखे लाल हो गई, एक नन्हा बालक मुझे अंदर जाने से रोक रहा है? इस बात से गुस्सा हो गए और गणेशजी के साथ युद्ध हुआ। भगवान शंकर ने गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
माता पर्वतीजी को इस बात का पता चला। वे बहुत ही दुखी हो गई। उन्होने भगवान शिव को बताया की यह हमारा पुत्र है तो भगवान शिव को भी बहुत बुरा लगा। और अपने बेटे को जीवित करने के लिए एक हाथी का सिर लगा दिया। पुत्र जीवित हो गया लेकिन सिर हाथी का ही रहा।
दूसरी मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ॐ का ध्यान कर रहे थे तब वास्तव मे श्री गणेशजी अचानक ॐ से प्रकट हुए।