श्री गणेशजी :
जब कोई व्यक्ति शिक्षा शुरू करता है, जब कोई व्यक्ति शादी करना चाहता है, जब आप शहर में प्रवेश करना चाहते हैं,
जब आप एक नए बने घर में रहना चाहते हैं, यात्रा करते समय, युद्ध में जाते समय, जब आपदा आती है
तब एसे कई शुभ कार्य मे और संकट के समय मे यदि मंगलमय गजानन को याद करते हैं, तो उनके रास्ते में कोई विध्न नहीं आता, उनकी मनोकामना सफल होती है और उनका प्रस्थान शुभ रहता है।
श्री गणेशजी के बारह प्रसिद्ध नाम निम्न लिखित है। –
1.सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्ननाशक, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचन्द्र, 12. गजानन ।
[1] सुमुख :
विघ्नेश्वर गणेशजी को सुमुख(जिसका मुख सुंदर हो) कहा जाता है।
स्वाभाविक रूप से ही हर कोई सोचता होगा की गजानन को सुमुख कैसे कहा जा सकता है?
इसके लिए, सुंदरता या लालित्य की निम्न लिखित विशेषता की आवश्यकता होती है।
जो हर समय पर नवाचार दिखाता हो यह लालित्य की विशेषता है।
हर पल गणेशजी का चेहरा देखकर कुछ नया जैसा लगता है। इसके अलावा, भोलेनाथ शंभू को कर्पूर गौरव कहा जाता है, और माता पार्वतीजी को सुंदरता के प्रचुर भंडार के रूप में माना जाता है, इसलिए दोनों के बेटे को स्वाभाविक रूप से ‘सुमुख’ कहा जाता है।
इसके अलावा, जब भगवान शंकर ने क्रोधित होकर गणपतिजी के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया, तो इससे निकलने वाला द्रव्यमान सीधे चंद्रमा पर चला गया और कहा जाता है कि जब हाथी का सिर उनके धड़ से जोड़ा गया था, तब वह चमक वापस आ गई और गजानन के मुख पर समा गई। इस कारण भी उन्हे सुमुख कहा जाता है।
इसके अलावा, उनके मुंह की पूर्ण सुंदरता को देखते हुए, उन्हे मूर्तिकला मंगल का प्रतीक माना जाता है और इसलिए उन्हे सुमुख के रूप में संबोधित किया जाता है।
[2] एकदंत :
एकदंत यानि एक दांत वाले।
श्री गणेशजी को एकदंत भी कहा जाता है। इस की कथा इस प्रकार है। –
एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए गए थे। श्री गणेशजी द्वारपाल के रूप मे बाहर खड़े थे, और किसी को अंदर जाने नहीं दे रहे थे।
एसे मे अचानक से परशुराम वहा पर आ गए और अंदर जाने के लिए द्रढ़ता से जिद करने लगे।
इसलिए उन दोनों मे उग्र बातचीत हुई और फिर लड़ाई जम गई। गणेशजी बालक थे इसलिए परशुराम खुद प्रथम हथियार उठाना नहीं चाहते थे।
लेकिन गणेशजी के उग्र वचन को सुन कर क्रोध मे आ कर परशुरामजी ने प्रथम प्रहार किया, जीससे गणेशजी का एक दांत टूट गया। जिस कारण से ‘एकदंत’ कहे गए।
जब तक गणेशजी के मुख मे दो दांत थे, तब तक उनमे द्वेतभाव था। लेकिन एकदंत वाले हो जाने के बाद से अद्वेतभाव वाले बन गए।
एकदंत की भावना यह भी बताती है कि जीवन में सफलता केवल उन्हीं को प्राप्त होती है जिनका एक लक्ष्य होता है।
‘एक’ शब्द ‘ माया’ को दर्शाता है, और ‘ दंत’ शब्द ‘रहस्यवादी’ को दर्शाता है। चूंकि श्री गणेशजी के पास ‘माया’ और ‘रहस्य’ दोनों के योग हैं, इसलिए उन्हें ‘एकदंत’ कहा जाता है।
[3] कपिल :
कपिल का अर्थ है कपिल वर्ण।
श्री गणेशजी का तीसरा नाम कपिल है। जैसे कपिला (कपिल वर्णी गाय) रंग में सुस्त होने के बावजूद, दूध, दही, घी आदि पोषक तत्व देकर मनुष्य को लाभ पहुंचाते हैं।
इसी तरह कपिल वर्ण के गणेशजी योगबल से मनुष्यो को बुद्धि के रूप मे दहि, आज्ञा के रूप मे घी और उन्न्त मूल्यो के रूप मे दूध आदि से पुष्ट करते है।
और मनुष्यों की बुराइयों को नष्ट करते है, बाधाओं को दूर करते है, दिव्य भावो से त्रिविध तापो को नाश करते है।
[4] गजकर्ण :
हाथी जैसे कान वाला।
गणेशजी का चोथा नाम गजकर्ण है। हाथी के कान सूप जेसे बड़े होते है। गणेशजी को बुद्धि के अनुष्ठाता देव माने जाते है।
इसलिए भारत देश के लोगो ने अपने आराध्य देव को बड़े कानो वाले बताया है।
सुन तो सबकुछ लेते है लेकिन कोई भी कार्य बिना सोचे-समझे नहीं करते है। इसका उदाहरण के लिए गणेशजी ने हाथी के कान के जेसे बड़े कान ग्रहण किए।
[5] लंबोदर :
बड़े पेट वाले या दुंदला।
गणनाथ का पांचवा नाम ‘लंबोदर’ है। अर्थात विशाल पेट वाले लंबोदर। किसी भी तरह की कोई भी बात को अपने पेट मे समा लेना ही सबसे बड़ा गुण है।
भगवान शंकर द्वारा बजाए गए डमरू की ध्वनि से गणेशजी ने पूर्ण देवताओं का ज्ञान प्राप्त किया।
माता पर्वतीजी के पैरो की पायल की ध्वनि से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया, भगवान शंकर के तांडव नृत्य को देखकर नृत्य विद्या का अभ्यास किया।
तदनुसार विभिन्न ज्ञान प्राप्त करने और पेट में शामिल करने के लिए एक लंबे और बड़े पेट की आवश्यकता थी।
[6] विकट :
अर्थात भयंकर।
गणेशजी का छठा नाम विकट है। गणेशजी का धड़ मनुष्य का है और मस्तक हाथी का है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसा विकट प्राणी स्वाभाविक रूप से विकट है।
श्री गणेशजी अपने नाम को सार्थक करने के लिए बाधाओं के मार्ग मे विकट रूप ले कर खड़े रहते हैं।
[7] विघ्ननाशक :
आपत्तियो को नाश करने वाले।
श्री गणेशजी का सातवा नाम विघ्नाशक है।
सचमे गणेशजी सभी विघ्नो के विनाशक है और इसीलिए ही सभी कार्यो के आरंभ मे श्री गणेशजी की पूजा अनिवार्य माना जाता है।
[8] विनायक :
नेताओं जैसे महान गुण वाले।
गणेशजी का आठवा नाम विनायक है। अर्थात विशिष्ट नेता। गणेश में मुक्ति प्रदान करने की क्षमता है। सभी विद्वानों को पता है कि मुक्ति का एकमात्र अधिकार भगवान नारायण के हाथों में है।
भगवान नारायण मुक्ति दे सकते हैं, लेकिन भक्ति का दान नहीं देते। लेकिन गणेशजी को भक्ति और मुक्ति के दाता माने जाते है।
[9] धूम्रकेतु :
धुएँ के रंग के ध्वज वाले।
यह नाम गणेशजी का नौवाँ नाम है। वह जो संकल्प-विकल्प को धुएँ के समान विचारों को महसूस करता है और उन्हें मूर्तियों में बदल देता है और उन्हें ध्वज की तरह आकाश में फहराता है। गणेशजी को सही मायनों मे धूम्रकेतु कहा गया है।
मनुष्यो के आध्यात्मिक और आधि भौतिक मार्ग मे आने वाले विघ्नो को अग्नि के जैसे जलाने वाले गणेशजी का ‘धूम्रकेतु’ नाम सार्थक होता है।
[10] गणाध्यक्ष :
गणेशजी का दसवां नाम है। गणपतिजी भौतिक जगत के एकमात्र स्वामी हैं, और गणेशजी गणो के स्वामी तो है ही। इसलिए उनका ‘गणाध्यक्ष’ नाम भी सार्थक होता है।
[11] भालचन्द्र :
मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने वाले।
श्री गणेशजी का ग्यारहवाँ नाम भालचन्द्र है। जिसके मस्तक पर चंद्र है एसे गजानन गणेशजी अपने माथे पर चंद्रमा को धारण करके उनकी शीतल और निर्मल तेजप्रभा के द्वारा संसार के सभी जीवो को उसमे शामिल करते है।
इससे यह भी पता चलता है कि किसी व्यक्ति का सिर जितना शांत होगा, वह उतनी ही कुशलता से अपने कर्तव्यों का पालन करने मे सक्षम होगा।
गणेशजी गणो के पति है, इसलिए अपने माथे पर सुधारक-हिमांशु अगर चंद्र को धारण करके प्रत्येक व्यक्ति को अपने सिर को अत्यंत शांत बनाकर उसकी आवश्यकता की व्याख्या करते है।
[12] गजानन :
गणेशजी का बारहवाँ नाम गजानन है।
अर्थात हाथी के मुह की तरह मुह वाले। हाथी की जीभ अन्य जानवरों से अद्वितीय है।
मनुष्यो के लिए भी यह अद्वितीय है, अच्छा भाषण इसे धक्का देता है, बुरा भाषण इसे छेदता है, लेकिन हाथी की जीभ बाहर नहीं निकलती है। यह तो अंदर से मुक्त है।
इसलिए इसे भाषण के अनर्थ का कोई डर नहीं है। इसी तरह आंख, नाक और कान भी शुभ संकेत हैं।