वेदो मे भगवान शिव को रुद्र कहा गया। इस सृष्टि के संहारक देव रुद्र समस्त सृष्टि के लिए कल्याणकारी है। वेद और शिव पुराणो मे भगवान शिव के कई अवतारो का उल्लेख किया गया है। इन के अनुसार रुद्र के दस अवतार इस प्रकार है।
1) महाकाल :
महेश्वर महादेव के मुख्य दस अवतारो मे से सब से पहला अवतार महाकाल है। शक्ति स्वरूप माँ भगवती महाकाली के स्वरूप मे उनके साथ होते है।
2) तारा :
पिनार्क पानी का दूसरा अवतार तारा स्वरूप मे है। उनके साथ भक्त के कष्टो को दूर करने मे माँ शक्ति तारा स्वरूप है।
3) बालभुवनेश :
भोलेनाथ का तीसरा अवतार बालभुवनेश है। इस अवतार के साथ माता भगवती बालाभुवनेश्वरी के स्वरूप मे है।
4) षोडशश्रीविधेश :
भगवान शंकर के रुद्र अवतारो मे चौथा स्वरूप षोडशश्रीविधेश नाम से प्रसिद्ध है। इस स्वरूप के साथ माँ शक्ति षोडशीश्रीविद्या के रूप मे है।
5) भैरव :
भगवान शिवशंभू के पांचवे रुद्र अवतारो मे भैरव को माना जाता है। इस स्वरूप के साथ माँ शक्ति भैरवी होती है। भय के दुर्गुणों को दूर करने के लिए भगवान शंकर का भैरव रूप अधिक महत्व का है।
6) छिन्न मस्तक :
महादेव के छठे रुद्र अवतार के रूप मे छिन्न मस्तिक के नाम से पूजा-आराधना की जाती है। माँ भगवती छिन्न मस्तिका के स्वरूप मे बिराजित होती है।
7) धुमवान :
त्रिनेत्रधारी के सातवें रुद्र अवतारो मे धुमवान है। इस रुद्र स्वरूप मे उनके साथ माँ धूमावती देवी होती है।
8) बगला मुख :
सदाशिव ने भक्तो के कल्याण के लिए विविध रुद्र अवतार धरण किए थे जिनमे से बगला मुख आठवाँ अवतार है। जिनके साथ भगवती बगला मुखी देवी की पूजा की जाती है।
9) मातंग :
भगवान शंभू का नववा अवतार मातंग है। जिनके साथ माता मातंगी बिराजमान होती है।
10) कमल :
नीलकंठ त्रिपुरारी के दसवें अवतार कमल है, जिनके शक्ति स्वरूप मे माँ कमलादेवी उनके साथ है।
इन के अलावा भी वेद और पुराणो मे उमापति शिवजी के कई अवतारो का उल्लेख देखने को मिलता है। शंकर भगवान का रुद्र अवतार …
कैलासपति शिवजी का रुद्र नाम कैसे पड़ा? इस के बारे मे शिवजी की पौराणिक कथा मे उल्लेख देखने को मिलता है। सृष्टि के सर्जनहार ब्रह्माजी के क्रोध से तामस प्रकट हुआ। वह रोते-रोते भगवान शंकर के पास पहुचा। भगवान ने उसे स्वीकारा, इसलिए उनका नाम रुद्र पड़ा।
उनके रहने के लिए शरीर, इंद्रियों, प्राण, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी आदि दिया गया। शिवजी के रुद्र स्वरूपो मे भूत, भैरव आदि तामसी कहा जाए एसी प्रजा उत्पन्न की। रुद्र के ग्यारह स्वरूप है, जैसे की वीरभद्र, शंकर, गिरीश, अजपाद, आपिर्बूध्य, पिनाका, अपराजित, भुवनाधेश्वर, कलापी, स्थाणु और भ्रूण।