मार्गशीर्ष महीने की चौदस अर्थात भगवान श्री दत्तात्रेय की जन्म जयंती। भगवान दत्तात्रेय की उपासना साधको के लिए भौतिक उन्नति से ज्यादा सविशेष आध्यात्मिक उन्नति के लिए ज्यादा महत्व की मानी जाती है। आज भी भगवान दत्तात्रेय के एसे भक्त है जो पौराणिक काल से दत्त संप्रदाय के नाम से प्रचालित पंथ चला आ रहा है।
भगवान दत्तात्रेय महर्षि अत्री और माता अनसूया के पुत्र है। भगवान दत्तात्रेय को शिवजी के अवतार माने जाते है, लेकिन वैष्णवजन उन्हे विष्णु के अवतार मानते है। उन्हो ने तीन धर्म वैष्णव, शैव और शक्त के संगम स्थल के रूप मे त्रिपुरा मे उन्होने लोगो को शिक्षा प्रदान की। उनके शिष्यो मे भगवन परशुराम का भी नाम लिया जाता है।
भगवान दत्तात्रेय कौन है ?
भगवान दत्तात्रेय ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्री के पुत्र है और उनकी माता का नाम अनसुया है। कई ग्रंथो मे यह बताया गया है की ऋषि अत्री और अनसुया के तीन पुत्र है, ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, शिवजी के अंश से दुर्वासा ऋषि और भगवान विष्णुजी के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
कई जगहो पर यह उल्लेख मिलता है की भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के सम्मिलित अवतार है।
भगवान दत्तात्रेय की कहानी :
जब माता अनसुया पतिव्रता धर्म का पालन कर रही थी, तब अपनी पत्नियों के कहने पर भगवान ब्रह्मा, भगवान महेश और भगवान विष्णु ने माता अनसूया की परीक्षा लेने के लिए ऋषियों के वेश मे उनकी कुटिया मे आए। और माता से कहा की आप हमे निर्वस्त्र हो कर खाना दे। उस समय माता अनसुया अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए तीनों देवों जो ऋषियों के वेश मे आए थे उन्हे बच्चे के रूप मे परिवर्तित कर दिया। और तीनों देवों को स्तनपान कराया। जिस के कारण माता को एक दिव्य अनुभूति हुई, और उनके मन मे माता बनने की इच्छा प्रकट हुई।
जब तीनों देवताओं की पत्नियाँ अपने पतियों को खोजते हुए देवी अनसुया के आश्रम मे आ पहुँची, तो अपने पतियों को शिशु रूप मे पाया। अपनी गलतियों का अहसास होने पर तीनों देवियों ने देवी अनसुया से माफी माँगी। देवी अनसुया ने माफ कर दिया और तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अपने वास्तविक रूप मे परिवर्तित कर दिया।
देवी अनसुया के पतिव्रता से प्रसन्न हो कर तीनों देवो ने उन्हे वरदान मांग ने के लिए कहा। देवी अनसुया ने तीनों देवो को पुत्र रूप मे प्राप्त करने की इच्छा जताई। तीनों देवो ने उनके घर मे पुत्र रूप मे जन्म लेने का वचन दिया। इस के बाद ब्रह्माजी चंद्र रूप मे, शिवजी ऋषि दुर्वासा के रूप मे और भगवान विष्णु दत्तात्रेय के रूप मे उनके घर पैदा हुए। इसी कारण से दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का अंश माना गया है।
दत्तात्रेय कोल्हापुर मे बसे :
वर्णित कथा के अनुसार चंद्रमा और ऋषि दुर्वासा जब तपस्या करने चले गए तब उन्होने अपनी सारी शक्तियाँ और तेज भगवान दत्तात्रेय को दे दिया। जिससे दत्तात्रेय मे ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की सभी शक्तियाँ समाहित हो गई। एसा माना जाता है की भगवान विष्णु के यह अवतार आज भी उनके योग के कारण इस संसार मे मौजूद है।
कहा जाता है की दत्तात्रेय भगवान कोल्हापुर मे निवास करते है, काशी मे गंगा स्नान करते है। कोल्हापुर मे वे रोज जप करते है और भिक्षा भी मांगते है। एक मान्यता के अनुसार भगवान दत्तात्रेय सुबह ब्रह्माजी के रूप मे दोपहर मे विष्णुजी के रूप मे और शाम को शिवजी के रूप मे यहाँ रहते थे।
भगवान दत्तात्रेय के साथ एक गाय और चार कुत्ते हमेशा साथ मे रहते है। माना जाता है की जब भगवान विष्णुजी ने यह रूप लिया था। तब धरती माता ने गाय और चारो वेदों ने कुत्तो का रूप ले लिया था और भगवन दत्तात्रेय की रक्षा के लिए उनके साथ रहने लगे थे।
एसा माना गया है की भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु है
पृथ्वी, पतंगा, कबूतर, हाथी, पिंगला वेश्या, वायु, सूर्य, हिरण, समुद्र, जल, आकाश, मछली, अग्नि, बालक, मधुमक्खी, कुरर पक्षी, चंद्रमा, साँप, तीर बनाने वाला, कुमारी कन्या, मकड़ी, भृंगी कीड़ा, अजगर और भौंरा।