सत्वगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी इन तीन प्रकार के जीवो के क्रियमान कर्म करने की रीत भी अलग-अलग होती है। कर्म का फल तो इन तीनों प्रकार के लोगो को मिलना ही है।
सत्वगुणी जीव : मै कर्म करूंगा, फल मिले या ना मिले।
रजोगुणी : मै कर्म करूँगा, लेकिन फल नहीं छोडुंगा।
तमोगुणी : जब तक फल नहीं मिलेगा मै कर्म नहीं करूंगा।
सत्वगुणी जीव कैसे होते है?
एक पुरुष था, उनके बेटे को रात मे अचानक ही बुखार आ गया। वह पुरूष डर गया और आधि रात मे ही डॉक्टर को बुलाने गया। डॉक्टर सत्वगुणी था, वह नींद से उठ कर देखा और जाना की उस इंसान का बेटा बहुत बीमार है, तो वह तुरंत ही दवाइयों की बेग लेकर जाने के लिए तैयार हो गया। उस पुरुष ने जब डॉक्टर को उसकी फिझ के बारे मे पूछा तो उस सत्वगुणी डॉक्टर ने कहा की पैसे की बात बाद मे करना, पहले तुम्हारे बेटे का दर्द मिटाते है।
उस डॉक्टर को उसकी विझिट फ़ी तो मिलेगी ही, लेकिन सत्वगुणी जीव कहता है – मै दर्द मिटाऊंगा पैसे मिले या ना मिले।
रजोगुणी जीव कैसे होते है?
उपरोक्त डॉक्टर जो रजोगुणी होता तो, वह एसा कहता की मै तुम्हारे साथ आ कर तुम्हारे बेटे को ठीक तो करूंगा मगर मुझे विझिट फ़ी के 100 रुपे देने होंगे।
तमोगुणी जीव कैसे होते है?
अगर वही डॉक्टर तमोगुणी होता तो वह कुछ इस तरह से पेश आता – पहले मुझे मेरी विझिट फ़ी के 100 रुपे दो तभी मै तुम्हारे साथ आ कर तुम्हारे बेटे को ठीक करूंगा।
कर्म करने की रीत मे फर्क
उपरोक्त के डॉक्टर को उसकी विझिट के पैसे तो मिलेंगे ही, लेकिन तीनों के क्रियमाण कर्म करने की रीत मे फर्क पड़ता है। उस बेटे को ठीक कर दिया तो उसके पिताजी उस सत्वगुणी डॉक्टर को खुशी से 100 रुपे देते है। रजोगुणी डॉक्टर के साथ सौदा करके 100 रुपे देते है और तमोगुणी डॉक्टर को नाराज़ हो कर 100 रुपे देते है।
सत्वगुणी, तमोगुणी और रजोगुणी किसी भी चीज़ को खरीद ने के लिए जाए, तो उसमे भी एसा ही होता है। आप जब घी खरीद ने के लिए जाते हो तब घी बेचने वाल जो सत्वगुणी होगा तो वह कहेगा कि –“भैया आप इस घी को चखिए, सूंघ के देखिये और पसंद आए तो लीजिये, और घर जा कर थोड़ा यूझ कीजिये और फिर भी पसंद ना आए तो बचा घी दे जाना और अपने पैसे ले जाना”।
रजोगुणी के पास रेडियो, क्रॉकरी, ट्यूबलाइट या किसी इलेक्ट्रिक का सामान आदि भौतिक सुख के साधनो को खरीद ने के लिए जाए तो उस दुकान के मालिक ने बिल मे छपवा ही दिया होता है कि, “किसी भी चीज़ को एक बार खरीद कर दुकान के बाहर गए और फिर वह चीज़ खराब निकली तो वह चीज़ फिर से लिया नहीं जाएगा, और पैसे भी वापस नहीं मिलेंगे”।
तमोगुणी चीज़ एसी होती है, जिस का व्यापारी पहले पैसे लिए बिना चीज़ नहीं दिखाता, जैसे कि सिनेमा वाले। सिनेमा के लिए पैसे दे कर टिकट खरीदो बाद मे सिनेमा देखो। और जो सिनेमा देखने बैठे बाद मे पसंद नहीं आए तो मत देखो वापस चले जाओ, पैसे तो पहले ही ले लिए है।
भाग्य में जितना है उतना ही पाओगे।
क्रियमाण कर्म जीतने करो, जिस प्रकार से करो उतना ही और उस प्रकार से ही भाग्य निर्माण होता है, और उतना ही भाग्य का फल मिलता है, उस से कम भी नहीं और उस से ज्यादा भी नहीं मिलता। जन्म लेते समय जितना संचित कर्म फल देने के लिए भाग्य बना हो उतना ही भाग्य भोगने के अनुरूप शरीर मिलता है, और माता-पिता, स्त्र-पुत्रादिक भी उतना ही भाग्य भोगने के अनुरूप प्राप्त होता है।
हमारे भाग्य के अनुरूप ही हमारे माता-पिता मिलते है और हमारे भाग्य के अनुरूप ही सुविधाएं हमारे माता-पिता के घर मे मिलती है। किस माता-पिता के घर जन्म लेना उसे चुनना हमारे ऊपर नहीं होता। हम तो अंबानी के घर ही जन्म लेना पसंद करेंगे, जहा पर जन्म लेने के साथ ही सोने कि थाली मे खाना मिले और कितने ही एपार्टमेंट के मालिक बन जाए। लेकिन एसे माता-पिता या स्त्री-पुत्रादिक कि पसंदगी हमे करनी नहीं होती है। यह सारे कर्ज हमारे भाग्य के कारण इसी जन्म मे मिल जाएंगे।
और आप के कर्ज पूरे होते ही आप तुरंत छुट जाएंगे, आप ने किए क्रियमाण कर्म आप के भाग्य के रूप मे आपके पूरे जीवनकाल के दौरान मिलते है।
भाग्य का लेखा कोई नहीं मिटा सकता।
हमने जीतने, जिससे, जिस प्रकार से, जीतने समय के लिए शुभ, अशुभ क्रियमाण कर्म किए होते है, उसमे से ही और उससे ही, उसी प्रकार से, उसी समय और उतने समय तक ही भाग्य आप को मिलेगा।
किसी कंपनी का मालिक अपने चपरासी के ऊपर ज्यादा खुश हो जाए, तो भी उसे कलेक्टर की कुर्सी पर नियुक्ति नहीं कर सकते।
राजा अपने नौकर से कितने भी संतुष्ट हो जाए फिर भी उसे उसके भाग्य से ज्यादा कुछ भी नहीं दे सकते। राजा फिर भी दे देता है, तो नौकर के हाथ से निकल जाता है। सूर्यनारायन जब निकलते है तो पूरी दुनिया को दिखाई देता है, लेकिन उल्लू को दिखाई नहीं देता, तो उसमे सूर्यनारायन का क्या दोष?
भाग्य मे जो निर्माण हुआ है, उसे कोई मिटा नहीं सकता। मनुष्य के जन्म के बाद उसके छठे दिन विधाता उसके लेख लिखने के लिए आते है, एसी हमारी मान्यता है। यह बात सच्ची हो तो भी मनुष्य ने जो क्रियमान कर्म किए होते है और उस कर्म ने जितना भाग्य का निर्माण किया होता है उस से थोड़ा कम या फिर उस से थोड़ा ज्यादा विधाता उस मनुष्य के लेख मे लिख ही नहीं सकते।
आप के भाग्य मे जीतने पैसे कमाने लिखे होते है उस से एक पैसा भी ज्यादा या कम आप को नही मिलेगा, यदि आप कई प्रकार के घोटाले करके अधिक पैसे प्राप्त करने का प्रयास करते है, तो नए निर्मित झूठे कर्मों मे फंस जाएंगे।
आप का भाग्य जन्म के साथ ही निर्मित हो चुका होता है, और इसीलिए आप कितनि भी कोशिश करले मगर जितना भाग्य मे लिखा होगा उतना ही मिलेगा।