कई राक्षस देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रयास करते हैं। वह शरीर द्वारा मंत्र-तंत्र की पूजा करता है और अंत में उसके आराध्य देव प्रसन्न होकर आशीर्वाद मांगने के लिए कहते हैं। प्रत्येक दानव शक्ति, अधिकार, पूरी दुनिया पर अपना प्रभुत्व और अमरता चाहता है। किसी को इन्द्र का इंद्रासन चाहिए तो किसी को स्वर्ग पर अधिकार चाहिए।
मनुष्य को भगवान से क्या मांगना चाहिए?
मनुष्य को भगवान से कुछ मांगना ही है तो करुणा मांगे, क्योंकि करुणा से मन स्वच्छ रहता है। “हे ईश्वर मै सुखी रहू या ना रहू, लेकिन मुझे दूसरों को सुखी करने का मौका देना, शक्ति देना। इस धरती का मुझ पर कर्ज है, इस कर्ज को चुकाने के लिए मुझमे देश भक्ति दे”। जिस प्रकार देश के जवान अपने जीवन की परवा किए बिना हसते-हसते सूली चढ़ जाते है।
मनुष्य को किस बात मे आनंद आता है?
करुणा से उल्टा गुण क्रूरता है। कई लोगो को क्रूरता मे ही सबसे ज्यादा रस होता है। उनमे सही उपदेश की कोई असर नहीं होती। जूठ बोलना, दुर्व्यवहार करना उसे ये लोग अपना जन्मसिध्ध अधिकार मानते है। एसे लोग मरने पर भी सच नहीं बोलते है।
इससे उल्टा कई लोग मरने पर भी जूठ नहीं बोल पाते है। सच बोलने के संस्कार उनकी रगो मे होता है। दुष्ट लोगो को भूल करने मे आनंद आता है, और उन भूलो को दोहरा कर उनमे पाप करने का डर खत्म कर देता है।
क्रोधी लोग कैसे होते है?
मनुष्य आवेश मे आ कर उग्र बन जाता है और उनके मन मे दया नहीं रहती। उनके मन पर इंसानियत की जगह दानवो का कब्जा हो जाता है। क्रोध ही क्रूरता का मूल होता है। क्रोधी मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुराई का रास्ता भी उसे सही रास्ता लगने लगता है। क्रूर और दुष्ट लोग विनम्र होने का दिखावा करने मे चतुर होते है।
मनुष्य तीन प्रकार के होते है, सत्व, रज और तमस। सत्व गुण वाले लोग करुणा शील होते है। एसे लोग हिंसा और हत्या विचार करते ही नहीं।
मनुष्य को कौन दुष्ट बनाता है?
मनुष्य भगवान को प्रार्थना करते है की, हम पर करुणा बरसाओ। लेकिन वो मनुष्य खुद भी तो किसी दूसरे प्राणी के प्रति क्रूरता तो रहता ही है। तो पहले हम खुद दूसरों पर करुणा करना सीख जाए फिर खुद के लिए करुणा की याचना करे।
मनुष्य के बुरे विचार और मन का क्रोध उसे दुष्ट बनाते है। तृष्णा, काम, मोह, लोभ, वासना, अर्थ और ईर्ष्या और शत्रुता से क्रूरता का जन्म होता है।
मनुष्य को शुध्ध विचार के लिए क्या करने की आवश्यकता है?
पहेले के लोगो मे संयम और सहनशीलता थी। क्षमा मांगने मे वे लोग हिचकिचाते नहीं थे। इस लिए उन मे शत्रुता भी नहीं रहती थी। उस समय राक्षस बाहर घूमते थे, इसलिए उन्हे पहचान सकते थे, लेकिन आज के समय मे राक्षसो ने मनुष्य के अंदर अपना स्थान बना लिया है। इसलिए उन्हे पहचानना मुश्किल हो गया है।
आज के सबंध भी शंकाशील हो गए है। इस सबंध मे भी ईर्ष्य और लोभ दिखाई देते है। इसके परिणाम स्वरूप यह दुनिया कलियुग का अड्डा बन गया है। जब तक मनुष्य क्रूरता और लोभ से बाहर नहीं आता तब तक वह शुध्ध विचार नहीं कर सकता।
भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता मे अर्जुन को समझाते हुए कहते है की, मनुष्य की बुद्धि मूर्खता की चादर से ढकी हुई है, इसलिए वह शुद्ध रूप से नहीं सोच सकता।
लालच को कैसे खत्म करे?
एक दृष्टांत के आधार पर मनुष्य की लालसा को जानते है। –
एक सूफी संत अपना जीवन निर्वाह के लिए भिक्षा मांगने के लिए निकलता है। रास्ते मे राजा का महल आता है। सूफी संत के लिए तो महल क्या? और झोपड़ी क्या? संत ने महल के दरवाजे के सामने अपना कटोरा रख दिया और भिक्षा मांगने लगा। उसी समय राजा वहा से गुजर रहे थे, उन्होने सूफी संत को कहा, ‘मांगिए, आज तो आप के सामने एक राजा खड़ा है, इससे अच्छा मौका आपको नहीं मिलेगा। जो चाहिए वह दूंगा’।
संत ने राजा की आवाज मे अभिमान देखा। उन्होने कहा, राजाजी मेरा ये कटोरा भर दीजिये, यह बिलकुल भी अधूरा नहीं होना चाहिए।
यह सुन कर राजा ने अपने सैनिक को बोल कर सोने की मुहर की थैली मँगवाई और बड़े ही अभिमान से उस थैली को कटोरे मे रखा। लेकिन कटोरा तो आधा खाली ही रह गया। एसे सोने की मुहर की कई थैलिया उस कटोरे मे डाली लेकिन वह नहीं भरा।
राजा के अहंकार को ठेस पहुंची। उसने हुक्म किया की ‘राज्य का पूरा खजाना खाली हो जाए तो भी सूफी संत का यह भीख का कटोरा भर दें’।
राजा के साथ उनका एक सिपाही भी खड़ा यह देखा रहा था,वह समजदार था। उसने राजा से कहा की ‘इसमे जिद करने की कोई जरूरत नहीं है, आप सूफी संत को ही पूछ लीजिये की इस कटोरे का रहस्य क्या है?’
राजा ने उस सैनिक की बात मानी और अपनी गलती का एहसास हुआ। और उस संत से माफी मांगी। संत ने अपना कटोरा खाली किया तो उसमे से राजा ने दिये सारे सोने की मुहर का ढेर हो गया।
राजा ने संत से पूछा की यह कटोरे का रहस्य क्या है? संत ने जवाब दिया की, लालसा कभी खत्म नहीं होती, ये कई सारे रूप बदल कर आते है, जैसे महत्वकांक्षा हो।
आज का मनुष्य चारो ओर से भयभीत है, रोग का भय, आर्थिक तंगी का भय, बेरोजगारी का भय, जल, स्थान और आकाश की यात्रा में दुर्घटना का भय, प्राकृतिक और मानव आक्रमण का भय, सुख को लूटने की जल्दबाजी, ये सब बातें मनुष्य के शील को खोखला कर रही हैं।
क्रोध से क्रूरता कैसे जन्म लेती है?
मनुष्य छोटी छोटी बातो मे उत्तेजित हो जाता है और क्रोध मे आ कर जो नहीं करना होता है वह भी कर देता है। इसलिए क्रूरता को मनुष्य के अंदर प्रवेश होने का दरवाजा खुल जाता है। और मनुष्य आवेश मे आ कर क्रूरता से भरा कार्य कर देता है।
मन का क्रोध और मन का बैर-भाव ही है जो क्रूरता को जन्म देता है। क्रोध करने से बुद्धि संकुचित हो जाती है और क्रूरता हावी हो जाती है।
आज की दुनिया की सब से बड़ी आवश्यकता है क्रोध को वश मे करना। जब हम क्रोध को वश मे करना सीख जाएंगे तो कोई दुर्व्यवहार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं होगी।
क्रोध को नियंत्रित करने के पाँच उपाय क्या है?
- मन को सात्विक और संतुष्ट रहने के लिए प्रशिक्षित करें। ध्यान, एकाग्रता, योग के माध्यम से मन को शांत करने का प्रयास करें।
- मनुष्य के दोषों को देखने से बचें। सबके प्रति दयालु रहें।
- कोई सुधारे या ना सुधारे, लेकिन मैं ईश्वर के पुत्र के रूप मे खुद मे सुधार करने के लिए बाध्य हूँ। अपने मन में ऐसे मूल्यों का विकास करते रहें।
- काम, लोभ, वासना, सत्तावादी आदि महत्वाकांक्षाओं पर विजय पाने का प्रयास करें, क्षमा और सहनशीलता का अनुसरण करें।
- अहंकार को त्यागें, विनम्र बनें और मन में सात्विक विचार रखें।