एकांत खुद की आत्मा से मिलता है।
एकांत आत्मा का सच्चा निवास है। आत्मा को वहाँ पूर्ण रूप से प्रकट होने का अवसर मिलता है। वहाँ पर किसी भी प्रकार के हिसाब-किताब की बात नहीं, कुछ ठीक करने की भी जरूरत नहीं है, और किसी प्रपंच के लिए भी वह समय नहीं है। वहाँ केवल आत्मा ही खिलती है, अपनी सुगंध बिखेरती है। उसकी शोभा निखरती है। एकांत आत्मा का साथी है, और आत्मा एकांत की मित्र है।
यहां आत्मा न केवल हमारी लोकप्रिय शब्दावली में अध्यात्म को प्रकट करती है, बल्कि आत्मा जीवन, सौंदर्य, चमक और तपस्या, संतोष और हमारे भीतर के काम की सभी कलाओं को भी व्यक्त करती है। एसा एकांत हमारी आत्मा को धन और धान्य से भरा-भरा कर देता है। और हमारे जीवन मे शांति बनाए रखती है। यह व्यक्ति को सुखी बनाने में सक्षम है। वहाँ पर किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती।
एकांत मे हमारे मन को कैसे शांति प्रदान करें ?
एकांत मे हमारा मन शांत रहता है, वहाँ पर जो सवाल हमारे मन मे रहते है उसका ठोस जवाब मिलता है। ऐसा एकांत अराजकता, अव्यवस्था, शोर-शराबे से बहुत दूर होता है। कोई यह भी कह सकता है कि केवल ऐसा एकांत ही आत्मज्ञान का अनुभव दे सकता है, केवल ऐसा एकांत ही व्यक्ति को शुद्ध शांति की अनुभूति दे सकता है।
एक अर्थ में ऐसा एकांत मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप से जोड़ता है। लेकिन ऐसा एकांत हर किसी की किस्मत में नहीं होता। कई कठिनाइयों का सामना करने के बाद, कई उलझनों, दृढ़-इच्छाशक्ति और बिना किसी छल के रहने वाले वीर को ही एसी शांति मिलती है।
एकांत स्वर्ग जैसा सुंदर भी और कठिन भी है।
सरल भाषा में कहें तो एकांत की ऐसी अवस्था स्वर्ग से भिन्न नहीं है। यहीं पर व्यक्ति को अनुभव होता है कि उसने सही अर्थों में आत्म-शिक्षा की यात्रा की है। लेकिन हमारे खुद के भीतर की ओर झाकना, हमरी खुद की आत्मा की ओर मुड़ना बहुत ही कठिन काम है।
इसके लिए हमे कितनी सारी बातो का त्याग करना पड़ता है, बहुत सी चीजों के बारे में सच्ची समझ पैदा करनी पड़ती है। सार और असार के बीच के अंतर को जानना होगा। स्थूल-सूक्ष्म का गहन ज्ञान प्राप्त करना होगा। एसा कहिए की कई सारी बाते, आदते और हमारे नियमो का त्याग करके एसे एकांत के क्षणो तक पाहुचा जा शकता है।
एकांत से नयी सोच कैसे मिलती है?
जैसे कि रूसो को अक्सर यह कहते सुना गया है कि, “सब से पहले हमे खुद के दोस्त बनना सीखना चाहिए”, अगर एकांत की उपलब्धि जैसी कोई चीज है, तो वह यह है। हम खुद ही पहले नंबर के हमारे मित्र है।
जर्मन कवि रिल्क ने कई बार एकांत (solitude) की तफ़दारी की है। उन्होने तो विवाह के संबंध मे भी कहा है की, आपसी एकांत की रक्षा करना ही विवाह है। ऐसा एकांत ही विश्व का महान ऊर्जा केंद्र या ऊर्जा का स्रोत है। एसे एकांत ने ही इस विश्व को कुछ नया दिया है, नई सोच एवं नई दिशा दी है।
एसे एकांत मे दुविधा की कोई गुंजाइस नहीं रहती है। वहा पर सिर्फ प्रेम ही छलकता रहता है। एकांत मोटे तौर पर प्रेम की अनुभूति है, आनंद की अनुभूति है। इस प्रकार एकांत सभी प्रकार के कुरुक्षेत्र से बाहर की दुनिया है। यह एक आंतरिक यात्रा है, एक आंतरिक उथल-पुथल है।
यह एक आंतरिक सुंदरता है, यह एक एसा वैभव है जो हर कोई प्राप्त नहीं कर सकता। जैसा कि फ्रांसीसी दार्शनिक ब्लेज़ पास्कर कहते हैं, यह वास्तव में दुखद है कि सभी व्यक्ति हासिल नहीं कर सकते।
अकेलापन क्या है?
ब्लेज़ बिल्कुल सही है। हम में से अधिकांश अकेले हैं, अंदर से खाली हैं, शोर से भरे हुए हैं, एसी दुविधा से बाहर निकलने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं। वह अकेलेपन के पोखर मे ही दुखी रहता है। एसे अकेलेपन से अंदर ही अंदर हमारा मन अशांत रहने लगता है। किसी प्रकार का कोई बोज सा लगाने लगता है।
अस्वस्थ मन-शरीर मनुष्य को व्याकुल बना देता है। ऐसा अकेला व्यक्ति अंदर से भी गरीब होता है। उसे पता नहीं है कि उसका लक्ष्य क्या है? या कहाँ है, उसे ईश्वर के द्वारा दिये गए आत्मा-शरीर की भी कोई समझ नहीं होती है।
अकेलेपन मे जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति कैसा होता है?
वह एक बैंक कैशियर की तरह जीवन व्यतीत करता है, जो एक दिन में करोड़ों का आदान-प्रदान करता है, लेकिन उससे कोई संबंध नहीं होता है। वह अपने मन को तृप्त नहीं करता और प्रेम से भी कोसो दूर रहता है।
वह नहीं सोचता कि इस दुनिया में जीवन में, जीने के लिए, या अनुभव करने के लिए बहुत सी खूबसूरत चीजें हैं। वे अपनी शिकायतों, सवालों या असफलताओं पर ध्यान देते रहते हैं।
एसे लोग खुद को एक पिंजरे की तरह बना देते है, जिससे बाहर निकलते ही नहीं, और उसी वजह से बाहर की किसी खूबसूरत चीज़ पर उनकी द्रष्टि जाती ही नहीं।
खुद को पाने की कोशिश कैसे करे?
कई लोग एसे होते है, जो खुद को पाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं करते है, और न ही खुद के लिए जो सवाल होने चाहिए उसे ढूंढने की कोशिश करते है। क्योंकि खुद पर सवाल करने से अपने आप को पहचान सकते है और खुद को पा भी सकते है।
अपनी विफलता या गलती से सीखने के बजाय, वह इसे छुपाता है या दूसरों पर दोष लगाता है। वह अपनी शक्तियों से भी अनजान है। इसलिए वह अपनी चेतना या अपने रूपों के बारे में कुछ भी नहीं जानता है, इसलिए वह खुद की खोज ही नहीं कर पाता।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास बहुत सारी भौतिक संपत्ति होती है या उन्हें जरूरत से ज्यादा प्रसिद्धि मिली होती है, लेकिन वे अनुचित रास्ते अपनाते हैं क्योंकि उन्हें अपनी असली पहचान नहीं पता होती है।
अकेलेपन से बाहर निकलना क्यों जरूरी है?
अकेलेपन में अपेक्षित समझ, ज्ञान, विश्वास, विवेक आदि का अभाव होता है। खुद से जो रिश्ता बनाना होता है, वो बनना बाकी होता है। अगर कोई आदमी अकेलेपन की ऐसी स्थिति से जल्दी उठता है, उससे बाहर निकलने की कोशिश करता है, अपनी असली लय पाता है, तो संभव है कि उसका अकेलापन उसे उस पूर्ण एकांत में ले जाए।
अर्जुन इसका प्रबल उदाहरण है। वही अर्जुन जो रथ के पीछे छिपना चाहता था, जो श्रीकृष्ण के अनमोल वचनों से जाग जाता है, और रथ के सामने आता है फिर वीरता से युद्ध करता है।
अकेलापन आदमी को विवश कर देता है। भौतिक गणित, प्रसिद्धि, धन ये सब उस समय काम नहीं आता। वहाँ पर सिर्फ संघर्ष, हताशा और ठहराव होता है। इसका शायद ही कभी सुखद अंत होता है।
जीवन मे एकांत क्यों जरूरी है?
डॉ। जॉर्ज प्रोचनिक यहां याद आ जाते है। उन्होंने कहा था कि, आप खुद को पूरी तरह से समझने के लिए एकांत में जाना चाहिए। आप को वहां शांति का सागर महसूस होगा। एकांत इस प्रकार एक व्यक्ति की भी महफिल बन जाती है। ऐसी यात्रा कठिन तो है पर असंभव नहीं।
आत्मा के साथ ऐसी निकटता में, ईश्वर ने जो कुछ भी सबसे अच्छा, सुंदर या संगीतमय बनाया है, सब कुछ सामने आता है, इतना कि वह आपको खुश कर देता है।